आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई है। एक मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि इस कानून का उपयोग अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं के खिलाफ किया था। आश्चर्य है कि आजादी के लगभग 75 साल बाद भी सरकार इस कानून को बनाए रखने की जरूरत समझती है।
कोर्ट ने आज इस मामले पर सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी बोम्बतकरे की याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने आज जिस याचिका पर नोटिस जारी किया है उसमें 1962 में आए ‘केदारनाथ सिंह बनाम बिहार’ फैसले पर सवाल उठाए गए हैं। उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि आइपीसी की धारा 124A वैध है, लेकिन इसका उपयोग ऐसे मामलों में ही होना चाहिए जिसमें किसी के कुछ कहने से सचमुच हिंसा हुई हो या सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का अंदेशा हो।
याचिका में कहा गया है कि यह फैसला पुराना पड़ चुका है। ये दुनियाभर में प्रचलित उस कानूनी सिद्धांत के मुताबिक नहीं है जिसमें किसी की बोलने की स्वतंत्रता को डरा कर दबाने को गलत माना गया है। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका को गंभीरता से लेते हुए कहा कि देश की सेवा कर चुके एक वरिष्ठ सेना अधिकारी की याचिका के उद्देश्य पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
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कोर्ट ने देशभर में राजनीतिक कारणों से इस धारा के दुरुपयोग का हवाला दिया। जस्टिस एएस बोपन्ना और ऋषिकेश रॉय के साथ बेंच में बैठे चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, “किसी राज्य में सत्ताधारी पार्टी अपने विरोधियों के ऊपर यह धारा लगवा देती है। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66A का भी इसी तरह दुरुपयोग हो रहा था।
इस कानून को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असंवैधानिक करार देने के बाद भी पुलिस लोगों को गिरफ्तार करती रही है। राजद्रोह की धारा भी इसी तरह लगाई जाती है कि किसी को परेशान किया जा सके। अधिकतर लोग बाद में बरी हो जाते हैं, लेकिन गलत तरीके से धारा लगाने वाले पुलिस अधिकारी की कोई जवाबदेही तय नहीं की जाती।”
चीफ जस्टिस ने आगे कहा, “यह कानून ऐसा है जैसे किसी बढ़ई को लकड़ी का एक टुकड़ा काटने के लिऐ आरी दी गई और वह पूरा जंगल काटने लग गया। सरकार कई पुराने कानूनों को खत्म कर रही है। राजद्रोह कानून पर अब तक उसका ध्यान क्यों नहीं गया?” एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट की चिंता से सहमति जताते हुए कहा, “निश्चित रूप से इस कानून के दुरुपयोग पर रोक लगनी चाहिए। इसे सिर्फ देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं को सीधे आघात पहुंचाने के मामलों तक सीमित रखने की ज़रूरत है।”
केंद्र की तरफ से कोर्ट का नोटिस स्वीकार करते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी संकेत दिए कि सरकार इस कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कदम उठाना चाहती है। मेहता ने कहा, “सरकार की तरफ से जवाब दाखिल होने दीजिए। कोर्ट की बहुत सारी चिंताएं कम हो जाएंगी।”