आरयू हेल्थ डेस्क।
बूढ़ा होना कौन चाहता है? शायद दुनिया में कोई नहीं, लेकिन जरा इस वाक्य पर गौर कीजिए “मुझे जैविक तौर पर तो ऐसी किसी भी चीज के बारे में नहीं पता जो ढलती उम्र के साथ बेहतर हुई हो।” स्पेन के नेशनल सेंटर फॉर ऑन्कोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन्स के डॉक्टर मैन्युअल सेरानो का यह वाक्य काफी निराश करने वाला है।
सेरानो साइंस ऑफ एजिंग नाम की किताब लिखने वालों में से एक हैं। रिसर्च करने वालों ने इस किताब में शरीर के अंदर होने वाली उन मुख्य प्रक्रियाओं का उल्लेख किया है जो उम्र ढलने के साथ ही शुरू हो जाती है।
सेरानो ने मीडिया को बताया कि ये वो प्रक्रियाएं हैं, जो निश्चित रूप से होती ही हैं। ये दुनिया के हर इंसान में कम या ज्यादा नजर आती हैं, इसका सारा श्रेय आपकी लाइफस्टाइल और आनुवांशिकी को जाता है।
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स्तनधारी जीवों में बढ़ती उम्र के साथ ये आठ लक्षण नजर आने लगते हैं और यही लक्षण इंसानों को भी एहसास दिलाते हैं कि वे बूढ़े होने लगे हैं। आइए जानते हैं इन लक्षणों के बारे में-
- शुरू हो जाती है डीएनए की क्षति
हमारा डीएनए एक तरह का जेनेटिक कोड होता है जो कोशिकाओं के बीच संचरित होता है। उम्र बढ़ने से इन कोड के संचरण में गड़बड़ी होने लगती है। धीरे-धीरे यह कोशिकाओं में जमा होना शुरू हो जाती हैं।
इस प्रक्रिया को आनुवांशिक अस्थिरता के रूप में जाना जाता है और यह विशेष रूप से तब प्रासंगिक होता है जब डीएनए स्टेम कोशिकाओं को प्रभावित करता है। आनुवांशिक अस्थिरता स्टेम कोशिकाओं की भूमिका को खतरे में डाल सकती है। अगर ये अथिरता बढ़ती है तो ये कैंसर में भी बदल सकती है।
- कम होने लगती है कोशिकाओं के नवीनीकरण की क्षमता
हमारी कोशिकाओं में क्षतिग्रस्त घटकों के संचय को रोकने के लिए शरीर में नवीनीकरण की क्षमता होती है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ ही ये क्षमता भी धीरे-धीरे कम होने लगती है।
ऐसे में कोशिकाएं बेकार या जहरीले प्रोटीन जमा करने लगती हैं- जो कई बार अल्जाइमर का कारण बन जाता है। इसकी वजह से लोगों में पार्किन्संस और मोतियाबिंद का खतरा भी बढ़ जाता है।
- कोशिकाएं मेटाबॉलिज्म कंट्रोल खो देती हैं
बढ़ती उम्र के साथ कोशिकाएं वसा और शक्कर के तत्व को सोखने की क्षमता खोने लगती हैं। इसके चलते बहुत बार मधुमेह की शिकायत हो जाती है। बढ़ती उम्र में जिन लोगों को मधुमेह की शिकायत होती है उन लोगों में विशेष रूप से यही कारण होता है। उम्रदराज शरीर उन सभी पोषक तत्वों को ग्रहण नहीं कर पाता है जो व्यक्ति खाता है।
- क्रोमोसोम्स भी होने लगता है कमजोर
हर डीएनए सूत्र के अंतिम छोर पर कैप जैसी संरचना होती है जो हमारे क्रोमोसोम्स को सुरक्षित रखते हैं- ये बिल्कुल वैसी ही संरचना होती है, जैसे हमारे जूतों के फीतों की, जिसमें फीते के अंतिम छोर पर एक प्लास्टिक का टिप लगा होता है।
इन्हें टेलोमर्स कहते हैं। जैसे-जैसे हम उम्रदराज होते जाते हैं, ये कैप रूपी संरचना हटने लगती है और क्रोमोसोम की सुरक्षा ढीली पड़ने लगती है। इस वजह से परेशानी पैदा हो सकती है।
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इस पर रिसर्च करने वाले मानते हैं कि टेलोमर्स की संरचना में जब गड़बड़ी आती है, तो कई बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इसकी वजह से फेफड़ों से जुड़ी समस्याएं और एनीमिया होने का भी खतरा बढ़ता है। ये दोनों ही रोग प्रतिरक्षा से जुड़ी गंभीर समस्याएं हैं।
- माइटोकॉन्ड्रिया कर देता है काम करना बंद
माइटोकॉन्ड्रिया शरीर को ऊर्जा प्रदान करने का काम करता है, लेकिन समय के साथ ये अपनी क्षमता भी खोने लगता है। इनके कमजोर पड़ने से डीएनए पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
- जॉम्बी की तरह काम करती हैं कोशिकाएं
जब कोई कोशिका बहुत अधिक चोटिल हो जाती है तो वह विघटित होना तो बंद हो जाती है लेकिन मरती नहीं है। ये जॉम्बी सेल अपने आसपास की कोशिकाओं को भी संक्रमित करने लगती है और इसके चलते शरीर में सूजन हो जाती है। ये कोशिकाएं उम्र और समय के साथ जमा होने लगती हैं। जिसकी वजह से बूढ़ें होने पर हाथ-पैर के साथ ही कभी-कभी पूरा मानव शरीर फूलने लगता है।
- एक-दूसरे से संपर्क करना बंद कर देती हैं कोशिकाएं
कोशिकाएं आपस में एक-दूसरे से संपर्क में रहती हैं, लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है उनका ये आपसी संपर्क घटने लगता है। उनके बीच संपर्क नहीं होने का असर ये होता है कि शरीर में सूजन आ जाती है। इसका नतीजा ये होता है कि वे रोगजनक और घातक कोशिकाओं के प्रति सक्रिय नहीं रह जाती हैं।
- स्टेम सेल अपनी क्षमता खोने लगती हैं
बढ़ती उम्र के साथ ही कोशिकाओं के दोबार उत्पन्न होने की क्षमता में कमी आ जाती है। स्टेम कोशिकाएं थकने लगती हैं। हाल के अध्ययन से पता चलता है कि स्टेम कोशिकाओं के कायाकल्प से बढ़ती उम्र के शारीरिक लक्षणों को सामने आने से रोका जा सकता है।
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वहीं इन सब लक्षणों के बारे में डॉक्टर मैन्युअल सेरानो ने मीडिया से कहा कि भले ही यह सब एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे फिलहाल रोका जाना संभव नहीं हो सका है, लेकिन एक अच्छी संयमित लाइफस्टॉइल के जरिए इसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है।