आरयू ब्यूरो, लखनऊ। देश पर संकट की तरह छा रहे कोरोना वायरस को देखते हुए रविवार को लगाए गए जनता कर्फ्यू का घंटाघर पर कोई खास फर्क देखने को नहीं मिला। एक तरह जहां लखनऊ की सड़कों से लेकर गलियां तक सूनी थीं। वहीं दूसरी ओर आज भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) व एनपीआर के खिलाफ दो महीनों से ज्यादा समय से प्रदर्शन कर रहीं महिलाओं का धरना पुराने लखनऊ के घंटाघर के नीचे जारी रहा।
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हालांकि आज रोज के मुकाबले महिलाओं की संख्या कुछ कम थीं। साथ ही महिलाएं एक जगह बैठने की जगह घंटाघर के आसपास छोटे-छोटे झुंड बनाकर बैठीं रहीं। अधिकतर महिलाएं व युवतियां चेहरे पर मास्क लगाने के साथ ही कपड़े से भी अपना चेहरा ढके थीं। वहीं धरने के दौरान महिलाओं ने सीएए, एनआरसी व एनपीआर विरोध बैनर लगाने के साथ ही देश का तिरंगा झंडा भी जगह-जगह लगा रखा था।
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प्रदर्शनकारी महिलाओं का मानना था कि कोरोना वायरस इन कानूनों से ज्यादा खतरनाक नहीं है। वह लोग इन कानूनों के अलावा कोरोना वायरस के खिलाफ भी लड़ाई लड़ रहीं हैं।
दूसरी ओर कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए पुलिस ने प्रदर्शन समाप्त करने की नोटिस दी थी। समझा जा रहा है कि नोटिस के बाद भी प्रदर्शन नहीं समाप्त करने वालीं महिलाओं को एक बार फिर मुकदमे का सामना करना पड़ा सकता है।
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बताते चलें कि पुलिस-प्रशासन के अलावा तमाम लोगों व धर्म गुरुओं ने भी हाल के दिनों में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए घंटाघर पर प्रदर्शन करने वाली महिलाओं से धरना समाप्त करने कि अपील की थी। हालांकि महिलाओं ने उनकी भी अपील को अनसुना कर दिया।
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वहीं महिलाओं के एकजुट रहने से कोरोना वायरस से संक्रमण फैलने का खतरा मंडरा रहा है, लेकिन महिला प्रदर्शनकारी किसी भी कीमत पर सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ धरना समाप्त करने को तैयार नहीं हैं। कुछ प्रदर्शनकारी महिलाओं का यह भी मानना है कि पुलिस-प्रशासन दो महीना से ज्यादा समय से चल रहे उन लोगों के प्रदर्शन को कोरोना वायरस के खतरे के नाम समाप्त कराना चाहता है। वहीं पुलिस प्रशासन के अधिकारी लगातार इस बात पर जोर दे रहें हैं कि कोरोना वायरस के खतरे के बीच इस तरह के प्रदर्शन जारी रखने से बड़ी संख्या में लोगों की जिंदगी खतरें में पड़ सकती है।