दिल्‍ली सरकार ने SC से कहा संविधान पीठ के फैसले के बाद भी काम-काज ठप

इंस्टीट्यूशनल क्वारेंटाइन
फाइल फोटो।

आरयू वेब टीम। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री और एलजी के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामला को लेकर दिल्‍ली सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। कोर्ट ने आज ट्रांसफर-पोस्टिंग से संबंधित याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार ने बताया कि राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के संबंध में संविधान पीठ के फैसले के बावजूद उसका कामकाज बिल्कुल ठप है।

दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा, सरकार का कामकाज पूरी तरह ठप्प है। साथ ही यह भी कहा कि संविधान पीठ के फैसले के बावजूद वह अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति के आदेश नहीं दे पा रही है। इन मुद्दों को जल्दी सुलझाने की जरूरत है।

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वहीं उपराज्‍यपाल की तरफ से हलफनामा दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय भी मांगा गया है। जिस पर दिल्ली में सेवाओं को नियंत्रित करने सहित अधिसूचनाओं से जुड़े मामलों पर अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी। दिल्ली सरकार की ओर से ही पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जय सिंह ने कहा कि अधिकारी इस संबंध में हलफनामा दायर करने के इच्छुक नहीं थे, इसलिए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने हलफनामा दायर किया है। जयसिंह ने कहा, मैं सिर्फ मामला स्पष्ट करना चाहती थी।

बता दें कि दिल्ली सरकार ने सर्वोच्‍च न्‍यायालय में याचिका दाखिल कर अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग समेत अन्य मसलों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। होम मिनिस्ट्री ने 21 मई को नोटिफिकेशन जारी किया था नोटिफिकेशन के तहत एलजी के जूरिडिक्शन के तहत सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और लैंड से संबंधित मामले को रखा गया है। इसमें ब्यूरेक्रेट के सर्विस से संबंधित मामले भी शामिल हैं।

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गौरतलब है कि चार जुलाई को दिल्ली और एलजी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में अहम है, इसलिए मंत्री-परिषद के पास फैसले लेने का अधिकार है। पीठ ने यह भी कहा कि एलजी के पास कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है। संविधान पीठ ने सर्व सम्मति से फैसला दिया कि हर मामले में एलजी की सहमति जरूरी नहीं।

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