आरयू ब्यूरो, लखनऊ। दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में जमात की मजलिस में भाग लेने के मामले में निरुद्ध छह विदेशी जमातियों की जमानत याचिका हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मंजूर कर ली है। हालांकि पीठ ने इन सभी को बगैर इजाजत देश छोड़ने पर रोक भी लगा दी है। पीठ ने सभी मुल्जिमों को मुख्यमंत्री कोविड-19 रिलीफ फंड में 11-11 हजार रुपए जमा कराने का भी आदेश दिया है।
जस्टिस जसप्रीत सिंह की एक पीठ ने यह आदेश आरोपित सैगिनबेक तोकतोबोलोतोव, सुल्तान बेक तुरसुन बैउलू, रुस्लान तोक्सोबेव, जमीर बेक मार्लिव, ऐदीन तालडू कुरगन व दाऊअरेन तालडू कुरगन की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर दिया है। बीते 18 अप्रैल से यह सभी न्यायिक हिरासत में निरुद्ध हैं।
पीठ के समक्ष इन सबकी जमानत अर्जी पर वकील प्रांशु अग्रवाल ने बहस की। उनका कहना था कि आरोपितों को कैसरबाग थानांतर्गत डॉ. बीएन वर्मा रोड स्थित मरकज मस्जिद से हिरासत में लिया गया था। जिसके बाद इन्हें लोकबंधु अस्पताल में 14 दिन के क्वारंटीन में भर्ती करा दिया गया। इन सभी का तीन-तीन दफा कोविड-19 टेस्ट हुआ। ये सभी टेस्ट में निगेटिव पाए गए।
यह भी पढ़ें- खालिद रशीद ने निजामुद्दीन मरकज मामले के जांच की उठाई मांग, जमात में शामिल लोगों से कोरोना टेस्ट करवाने कि अपील भी की
वकील प्रांशु अग्रवाल का यह भी तर्क था कि मुल्जिमों ने अपने प्रत्येक मूवमेंट की जानकारी फॉरेनर रिजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस, लखनऊ को दी थी। साथ ही ऑफिस के आईबी अधिकारी को भी सभी जानकारियां उपलब्ध कराई थी। इन्होंने न तो वीजा नियमों का उल्लंघन किया और न ही गलत या फर्जी पासपोर्ट से भारत में दाखिल हुए। यह भी कहा कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद राष्ट्रीय लॉकडाउन लागू कर दिया गया। जिससे इनका लखनऊ के बाहर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
जमानत का सरकार की ओर से किया गया विरोध
दूसरी तरफ आरोपितों की जमानत अर्जी का सरकार की ओर से जोरदार विरोध किया गया। कहा गया कि मुल्जिम पर्यटक वीजा पर भारत में दाखिल हुए थे, लेकिन उन्होंने धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन में संपर्क कर इसकी जानकारी भी नहीं दी।
एकल पीठ ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात मुल्जिमों की जमानत अर्जी मंजूर कर ली। कहा कि आरोपितों पर लगी धाराओं में अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान है। हमारा संविधान दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार न सिर्फ भारत के नागरिक बल्कि विदेशियों को भी देता है। लिहाजा इस आधार पर जमानत याचिका को खारिज नहीं किया जा सकता कि मुल्जिम विदेशी नागरिक हैं।