आरयू वेब टीम। राजस्थान के जालोर में शुक्रवार को तेज धमाके के साथ एक उल्कापिंड गिरने से हड़कंप मच गया। विभिन्न धातुओं से बने पिंड में इतनी स्पीड थी कि वह जमीन में करीब एक फिट अंदर घुस गया। वहीं लोगों ने इसके गिरने की आवाज दो किलोमीटर दूर तक सुनी। इस उल्का पिंड की जांच करने पर इसकी कीमत करोड़ों में भी पहुंचने की उम्मीद जतायी जा रही है।
मिली जानकारी के अनुसार के जालोर के सांचौर चरखी गायत्री कॉलेज के पास धातु के टुकड़े के गिरने की सूचना पर शुक्रवार को उपखंड अधिकारी भूपेंद्र यादव मौके पर पहुंचे थे और आसमान से गिरी धातु को देखा। इस दौरान धातु के बारे में एक्सपर्ट टीम को सूचना दी गई। ऐसे में एक्सपर्ट टीम ने मौके पर पहुंचकर धातु को कब्जे में लेने के साथ ही लैब में उसकी जांच शुरू की।
तौल करने पर जहां पिंड का वजन 788 ग्राम होने का पता चला। वहीं कंप्यूटर व अन्य मशीन से जांच की गई तो पिंड की सतह पर प्लेटीनम धातु की मात्रा 0.05 ग्राम, नायोबियम 0.01 ग्राम, जर्मेनियम 0.02 ग्राम, आयरन 85.86 ग्राम, कैडमियम की मात्रा 0.01 ग्राम, निकिल 10.23 ग्राम पाई गई है।
वहीं इस बारे में कम्प्यूटर टेस्टिंग के डायरेक्टर शैतान सिंह कारोला ने मीडिया को बताया कि उल्का पिंड की जांच में सतह से छह धातुओं के बारे में पता चला है, जिसमें प्लेटिनम सबसे महंगी है। प्लेटिनम का दाम पांच से छह हजार रुपये प्रतिग्राम होता है। पूरे पिंड की जांच करने पर अगर अंदर भी इसी तरह का मटेरियल निकलता है तो इसकी कीमत करोड़ों रुपये में हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए या पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं, उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में टूटते हुए तारे कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुंचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं।
रात में उल्काएं देखी जा सकती हैं, लेकिन इनमें से पृथ्वी पर गिरने वाले पिंडों की संख्या बेहद कम होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि एक तो यह अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये पिंड ही हैं।