हाईकोर्ट: नरोदा पाटिया नरसंहार में पूर्व मंत्री कोडनानी बरी, बाबू बजरंगी को 21 साल की सजा

माया कोडनानी
माया कोडनानी। (फाइल- फोटो)

आरयू वेब टीम। 

गुजरात दंगों से जुड़े नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में आज अहमदाबाद हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। जिसके तहत बाबू बजरंगी को 21 साल जेल की सजा सुनायी है। वहीं गुजरात की भाजपा सरकार की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को बरी कर दिया है। कहा जा रहा है वारदात की जगह उनकी मौजूदगी साबित नहीं होने की वजह से उन्‍हें बरी किया गया। इसके अलावा मामले में 30 अन्‍य दोषियों की हाईकोर्ट ने सजा बरकारार रखी है।

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बतात चलें कि माया कोडनानी को निचली अदालत ने 28 साल कारावास की सजा सुनायी थी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हाईकोर्ट में माया कोडनानी के पक्ष में गवाही दी थी। पिछले साल अगस्‍त में मामले में सुनवाई पूरी हो गयी थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रखा था।

जाने क्‍या था मामला

गुजरात में साल 2002 में हुए दंगों के दौरान अहमदाबाद में स्‍थ‍ित नरोदा पाटिया इलाके में 97 लोगों की हत्‍या कर दी गयी थी। आंकड़ों के अनुसार दंगे में 33 लोग घायल भी हुए थे। दंगा गोधरा में साबरमती एक्‍सप्रेस ट्रेन की बोगियां जलाने की घटना के अगले दिन भड़का था। बोगियां जलाने के बाद विश्‍व हिन्‍दू परिषद (वीएचपी) ने बंद का आह्वान किया था। इस दौरान नरोदा पाटिया इलाके में उग्र भीड़ ने अल्‍पसंख्‍यक समुदाय के लोगों पर हमला किया था, जिसमें लोगों की जानें गयी थी।

62 लोगों को बनाया गया था आरोपित

इस मामले में अगस्‍त 2009 में नरोदा पाटिया कांड का मुकदमा शुरू हुआ। जिसमें 62 आरोपितों के खिलाफ आरोप दर्ज किए गए। सुनवाई के दौरान एक अभियुक्‍त विजय शेट्टी की मौत हो गयी। अदालत ने सुनवाई के दौरान 327 लोगों के बयान दर्ज किये जिनमें पत्रकार, कई पीड़ित, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी और सरकारी अधिकारी भी शामिल थे।

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तीन साल बाद सुनाई गयी थी सजा

अगस्त 2012 में एसआईटी मामलों के लिए विशेष अदालत ने भाजपा विधायक और राज्‍य की नरेंद्र मोदी सरकार में पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को हत्या और षड्यंत्र रचने का दोषी पाया। इसके अलावा 30 अन्‍य को भी कोर्ट ने दोषी ठहराया। वहीं बाकी 29 को सबूत के आभाव में बरी कर दिया गया था।

दोषियों ने फैसले को हाईकोर्ट में दी चुनौती

विशेष अदालत के फैसले को दोषियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस हर्षा देवानी और जस्टिस एएस सुपेहिया की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की। सुनवाई पूरी होने के बाद अगस्‍त 2017 में कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्ष‍ित रख लिया।

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