शिक्षामित्र सुसाइड
शिक्षामित्र के शव के पास से मिला सुसाइड नोट।

आरयू ब्‍यूरो, 

लखनऊ। सामायोजन रद्द होने के बाद से अवसादग्रस्‍त चल रहे शिक्षामित्रों के जान देने का सिलसिला उत्‍तर प्रदेश में थमता नहीं नजर आ रहा है। बीती रात कन्‍नौज जिले के गोपीचन्‍द्र स्थित प्राथमिक विद्यालय में तैनात शिक्षामित्र पवन कुमार ने अपने घर में फांसी लगाकर जान दे दी।

सुबह घर में शव लटकता देख परिजनों में रोना-पीटना मच गया। जानकारी पाकर मौके पर पहुंची स्‍थानीय पुलिस ने छानबीन के बाद शव को पोस्‍टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।

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शिक्षामित्र सुसाइड
पवन कुमार। (फाइल फोटो)

वहीं पवन कुमार के पास से मिले सुसाइड नोट में उसने अपनी मौत का जिम्‍मेदार  सीधे तौर पर शिक्षा विभाग को बताया है। साथ ही जबरन बीएलओ की ड्यूटी कराए जाने को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर संगीन आरोप भी लगाएं हैं।

सुसाइड नोट में बयां किया दर्द

पवन के पास से मिले सुसाइड नोट में उन्‍होंने लिखा है कि उनका परिवार में किसी से काई झगड़ा नहीं हुआ है। वो अपनी नौकरी से तंग आ चुके हैं, और उनकी मौत का जिम्‍मेदार उनका शिक्षा विभाग है। बीएलओ ड्यूटी के लिए एनपीआरसी प्रभात कुमार मिश्रा, बीआरसी शैलेष मिश्रा और खण्‍ड शिक्षा अधिकारी सुनील दुबे टॉर्चर कर रहे थे। जिसकी जानकारी उन्‍होंने बीएसए और जिलाधिकारी को भी दी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी।

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दूसरी ओर साथी के जान देने के बाद शिक्षामित्रों में काफी रोष है। राजधानी के ईको गार्डेन में शिक्षामित्रों की मांग के लिए साथियों के साथ मुंडन कराने करीब पांच महीने से धरने पर बैठी आम शिक्षक शिक्षामित्र एसोसिएशन की अध्‍यक्ष उमा देवी ने कहा कि अब तक आठ सौ से ज्‍यादा शिक्षामित्रों की सुसाइड करने और अवसाद की वजह से मौत हो चुकी है, लेकिन योगी सरकार की नींद अब तक नहीं खुली है। जबकि बीते 25 जुलाई को सुहागिन महिलाओं के मुंडन कराने के बाद अपनी फजीहत होते देख सरकार ने एक कमेटी गठित की थी, लेकिन बाद में उसे भी ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया है।

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उमा देवी ने अपने एक बयान में कहा कि साथ ही कन्‍नौज में पवन कुमार को जान देने के लिए अधिकारियों ने मजबूर किया था, ये बात सुसाइड नोट से साबित हो चुकी है। इसलिए अधिकारियों की निरंकुशता और भ्रष्‍टाचार को रोकने के लिए सरकार इस मामले में दोषी अधिकारियों पर तत्‍काल कार्रवाई करने के साथ ही शिक्षामित्रों की मांगों को पूरा करे। जिससे कि आगे किसी शिक्षामित्र को इस तरह से कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़े।

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