आरयू वेब टीम। दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय सूचना आयोग के एक आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें भारतीय वायु सेना को स्पेशल फ्लाइट रिटर्न (एसआरएफ)-II के बारे में जानकारी देने के निर्देश दिए गए थे। सूचना आयोग के निर्देश के जवाब में भारतीय वायुसेना ने कहा था कि यह संबंधित विवरण साझा नहीं कर सकता है, क्योंकि यह प्रधानमंत्री के सुरक्षा से जुड़ा मामला है।
न्यायमूर्ति नवीन चावला ने आरटीआइ आवेदक कोमोडोर (सेवानिवृत्त) लोकेश के बत्रा को भी नोटिस जारी किया और उनसे चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। कोर्ट ने भारतीय वायुसेना से यह भी जानने की कोशिश की कि फ्लाइट में यात्रियों की संख्या का खुलासा करने से सुरक्षा पर क्या असर पड़ेगा। साथ ही कोर्ट ने पूछा है, “यात्रियों की संख्या देने में क्या समस्या है? हो सकता है कि आप नाम न दें। यदि संख्या दी जाती है तो यह देश की संप्रभुता को कैसे प्रभावित करता है?”
यह भी पढ़ें- नए संसद भवन की नींव रख PM मोदी ने कहा, संविधान हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ व इसकी अखंडता सबसे पहले
भारतीय वायुसेना ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आरटीआइ में मांगी गई जानकारी प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे से संबंधित है। इसमें विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) कर्मियों के नाम भी पूछे गए हैं जो भारत के प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर उनकी निजी सुरक्षा के लिए उनके साथ जाते हैं। अगर इस तरह की जानकारियां आरटीआइ के माध्यम से दी जाती है तो इस खुलासे से भारत की संप्रभुता एवं अखंडता प्रभावित हो सकती है। साथ ही सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक एवं आर्थिक हितों को भी इससे खतरा पहुंच सकता है।
सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि आइएएफ ने पहले ही उड़ानों का विवरण दे दिया है। हालांकि, वे मांगी गई जानकारी का दूसरा भाग नहीं दे सकते हैं जो यात्रियों के विवरण से संबंधित है। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की जानकारी दी जाती है तो इससे यह पता चलेगा कि पीएम अपने सुरक्षा तंत्र में कितने लोगों के साथ यात्रा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जानकारी बेहद गोपनीय है और इससे याचिकाकर्ता (बत्रा) को किसी भी रूप में फायदा नहीं होगा। हालांकि, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने यात्रियों के संबंध में जानकारी मांगी है जिसमें विभिन्न मंत्रालय के अधिकारी, पत्रकार आदि शामिल हो सकते हैं।
बत्रा के लिए अपील करते हुए, उनके वकील प्रसन्ना एस ने अदालत को बताया कि सीआईसी ने जुलाई में आदेश पारित किया था और निर्देश दिया था कि सूचना 15 दिनों के भीतर दी जाए। हालांकि, ऐसा नहीं किया गया है और उन्हें केवल सात सितंबर को सूचित किया गया कि आदेश को चुनौती दी जा रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय वायुसेना ने इस सूचना की आपूर्ति करने का बीड़ा उठाया था जिसके बाद सीआईसी ने आदेश पारित किया था। अब इस मामले की सुनवाई 12 अप्रैल को होगी।