राफेल डील पर ऑफसेट से जुड़ी नीतियों को लेकर CAG ने की रक्षा मंत्रालय की आलोचना

राफेल डील
फाइल फोटो।

आरयू वेब टीम। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक ने ऑफसेट से जुड़ी नीतियों को लेकर रक्षा मंत्रालय कि कड़ी आलोचना की है। इसी पॉलिसी के तहत सरकार ने फ्रांस की एविएशन कंपनी दसॉ एविएशन से 36 राफेल विमानों के लिए डील की है। शीर्ष ऑडिटर कैग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि इस फ्रेंच फर्म ने अभी तक डिफेंस रिसर्च और डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के प्रति अपने ऑफसेट शर्तों को पूरा नहीं किया है।

संसद में रखी गई रिपोर्ट में कैग ने कहा कि इन हेलीकॉप्टरों की अभियानगत सीमा से संबंधित दिक्कतों से निपटने के लिए 2002 में प्रस्तावित उन्नयन कार्यक्रम 18 साल बाद भी अंजाम पर नहीं पहुंच पाया है। इसमें कहा गया कि परिणाम स्वरूप एमआई-17 हेलीकॉप्टर सीमित क्षमता के साथ उड़ान भर रहे हैं जिससे देश की अभियानगत तैयारी के साथ समझौता हो रहा है।

कैग ने कहा, ‘‘खराब योजना और विभिन्न चरणों में अनिर्णय की स्थिति से रक्षा मंत्रालय को 90 एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के उन्नयन के लिए एक इजराइली कंपनी के साथ समझौता करने में 15 साल (जनवरी 2017) लग गए।’’ कैग ने पांच यूएवी रोटैक्स इंजनों की आपूर्ति के लिए बढ़ी हुई कीमत-87.45 लाख रुपये प्रति इंजन-में मार्च 2010 में इजराइल एरोस्पेस इंडस्ट्रीज के साथ करार करने पर भारतीय वायुसेना की भी आलोचना की।

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एक अन्य मामले में लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन और यूरोप की मिसाइल निर्माता कंपनी एमबीडीए ने 36 राफेल जेट की खरीद से संबंधित सौदे के हिस्से के रूप में भारत को उच्च प्रौद्योगिकी की पेशकश के अपने ऑफसेट दायित्वों को अभी तक पूरा नहीं किया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। दसॉ एविएशन राफेल जेट की विनिर्माता कंपनी है, जबकि एमबीडीए ने विमान के लिये मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति की है।

कैग की संसद में पेश रिपोर्ट में भारत की ऑफसेट नीति के प्रभाव की धुंधली तस्वीर पेश की गई है। कैग ने कहा कि उसे विदेशी विक्रेताओं द्वारा भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का एक भी मामला नहीं मिला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रक्षा क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पाने वाले 63 क्षेत्रों में से 62वें स्थान पर रहा है।

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