आरयू वेब टीम।
देश की उच्चतम न्यायालय ने आज सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की जांच कर रहे सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की एसआइटी जांच कराने के लिए दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया।
इस संबंध में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों और मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाकर न्यायपालिका को विवादित बनाने का कोशिश की जा रही है। साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि ‘लोया की मौत की परिस्थितियों के संबंध में चार जजों के बयान पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है।
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वहीं रिकॉर्ड में रखे गए दस्तावेज और उनकी जांच यह साबित करती है कि लोया की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि इन याचिकाओं से यह एकदम स्पष्ट है कि इसका असली मकसद न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला करने का प्रयास था। न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के मकसद से इस तरह की ओछी और हित साधने वाली याचिकाएं दायर की जा रही हैं।
सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई अदालत के न्यायाधीश बीएच लोया की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु के संबंध में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और महाराष्ट्र सरकार के वकीलों के बीच तीखी तकरार हुई थी। वरिष्ठ अधिवक्ताओं के इस तरह के आचरण को लेकर पीठ ने गहरी नाराजगी व्यक्त की थी। महाराष्ट्र सरकार की ओर से बार-बार यह दावा किया था कि स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिकायें प्रायोजित हैं।
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इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया था कि याचिका में किए गए अनुरोध पर कोई भी आदेश देते समय न्यायालय को बहुत सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि जांच के आदेश देने की स्थिति में मुंबई उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीशों और यहां तक कि प्रशासनिक समिति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अंतर्गत अपने बयान दर्ज कराने होंगे। इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने के लिए मुंबई लायर्स एसोसिएशन, कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बीएस लोन ने शीर्ष अदालत में याचिकायें दायर की थीं।
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