आरयू ब्यूजरो, लखनऊ/प्रयागराज। देशभर में कोरोना प्रकोप के कारण पिछले दो सालों से तमाम बोर्डों के स्कूल बंद हैं और ऑनलाइन पढ़ाई चल रही है, कोरोना की दूसरी लहर में ऑनलाइन कक्षाएं भी बाधित हुई थीं, लेकिन प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस वसूल रहे हैं, जिसके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में पैरेंट्स एसोसिएशन की तरफ से एक याचिका दाखिल की गई थी।
उसी याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार, यूपी बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड और आइसीएसई बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने इसके लिए एक हफ्ते का समय दिया है। अब अगली सुनवाई पांच जुलाई को होगी।
मुरादाबाद पेरेंट्स ऑफ ऑल स्कूल एसोसिएशन के सदस्यों (अनुज गुप्ता एवं अन्य) ने हाईकोर्ट में यह याचिका मार्च 2021 में दायर की गई थी। कोविड के कारण इसकी सुनवाई अभी तक नहीं हो पाई। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि निजी स्कूल अभिभावकों से बिना बच्चों को पढ़ाए अवैध फीस वसूली कर रहे हैं। जिससे पूरे राज्य में अभिभावकों और उनके बच्चों का मानसिक उत्पीड़न हो रहा है। ऐसे में अवैध वसूली पर रोक लगाने और उचित फीस निर्धारण के लिए अभिभावकों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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इस मामले की सुनवाई कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमएन भंडारी व जस्टिस राजेंद्र कुमार कर रहे थे। कोर्ट ने जब सरकार का पक्ष रख रहे अधिवक्ता से पूछा कि मनमानी फीस वसूली के खिलाफ सरकार ने अब तक क्या किया? सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई कि हमने सभी बोर्डों और स्कूलों को नोटिस जारी किया है। स्कूलों के ट्यूशन फीस के अलावा बाकी कोई भी शुल्क लेने पर रोक लगा दी गई है। इस बारे में आदेश भी जारी कर दिया गया है, लेकिन हाईकोर्ट सरकार की इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ।
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इस पर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने कहा कि ऐसे नोटिस का क्या फायदा जब उस पर कोई अमल न हो। इस नोटिस के बाद भी फीस न जमा कर पाने के कारण बच्चेो स्कूलों से निकाले जा रहे हैं। अभिभावकों का उत्पीड़न हो रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा कि आपको जो कुछ भी कहना है एक सप्ताह में जवाब दाखिल करिए।
2020-2021 व संपूर्ण कोरोना काल के सत्र के लिए निजी स्कूल मनमानी और अत्यधिक स्कूल फीस वसूल करने के लिए अभिभावकों का शोषण व उत्पीड़न कर रहे हैं, और शुल्क के भुगतान हेतु एसएमएस और व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से माता-पिता और बच्चों को लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है की कोई भी ऐसा स्कूल नहीं है जो की अनुचित शुल्क के लिए पीड़ित न कर रहा हो, और यहां तक कि देशव्यापी तालाबंदी के दौरान जिस अवधि के लिए स्कूल बंद थे और कोई भी सेवा प्रदान नहीं की गई थी, उस काल के लिए भी शुल्क वसूला जा रहा है।
अधिवक्ता शाश्वत आनंद व अंकुर आजाद के माध्यम से दायर याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार द्वारा यूपी स्व-वित्तपोषित स्वतंत्र स्कूल (शुल्क विनियमन) अधिनियम, 2018, निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों के संचालन को विनियमित करने और ऐसे शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस की अनुचित मांगों पर लगाम लगाने के लिए बनाया गया है। उक्त अधिनियम की धारा आठ में निजी शिक्षण संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस को विनियमित करने और उसके संबंध में छात्रों/अभिभावकों/अभिभावकों की शिकायतों को सुनने के लिए जिलाधिकारी कि अध्यक्षता में ‘जिला शुल्क नियामक समिति’ के गठन का प्रावधान है। हालांकि, आज तक प्रदेश में निजी स्कूलों के शुल्क विनियमन व अभिभावकों की समस्याओं के निवारण हेतु शायद ही ऐसी कोई समिति बनाई गई है।
गौरतलब है कि बीते दिनों, राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर ये आदेश दिया है कि कोई भी निजी स्कूल ट्यूशन फीस के अलावा और कोई फीस, जैसे एग्जाम फीस, स्पोर्ट्स, साइंस लैबोरेटरी, लाइब्रेरी, कंप्यूटर, एनुअल फंक्शन व ट्रांसपोर्ट फीस आदि, नहीं ले सकते, क्योंकि सभी स्कूल लंबे समय से शारीरिक उपस्थिति के लिए बंद हैं और परीक्षाएं भी फिजिकली नहीं हो रही हैं। इसपर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कोई भी निजी स्कूल राज्य सरकार के आदेश का पालन नहीं कर रहा है, और न ही राज्य सरकार आपने आदेश को सुचारु ढंग से लागू करवा पा रही है ।