आरयू ब्यूरो
लखनऊ। लंबी खीचतान के बाद अखिरकार गुरुवार को सपा प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव सीएम पर भारी पड़ ही गए। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो चाचा ने अपनी गुगली से अखिलेश यादव को क्लीन बोल्ड कर दिया है। बहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल को सपा में विलय कराने में चाचा ने अपनी पुरानी चूक को सुधारा है। पूरे मामले को सियासत के मंझे हुये खिलाड़ी की तरह आगे बढ़ाया है। जिससे सीएम के हाथ में विरोध करने के अवसर बहुत ज्यादा नहीं बचे है।
शिवपाल ने बताया फैसला सपा सुप्रीमा का
पार्टी मुख्यालय में आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान बहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय के मामले में शिवपाल सिंह यादव सीधे कुछ नहीं बोले। पूरे निर्णय को उन्होंने कुछ इस तरह से रखा जैसे पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह का फैसला वह सुना रहे हो।
विलय की जानकारी देते हुये शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि नेता जी (मुलायम सिंह) ने विलय के फैसले पर अपनी मोहर लगा दी है। नेता जी ने अगर कोई निर्णय ले लिया तो बस वही पार्टी का सर्वोच्च व अंतिम निर्णय है। विरोध की किसी संभावना को विराम देने के लिये यह भी कह डाला कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इस पर सहमत है।
शायद शिवपाल सिंह यादव को उम्मीद है कि उनके ऐसा कहने से भतीजे अखिलेश यादव के पास विरोध करने की गुंजाइस नहीं बचेगी। हालांकि उनकी उम्मीद की हकीकत इस बारे में सीएम की टिप्पणी आने के बाद ही सामने आएगी। लांयन सफारी पार्क के लोकापर्ण के लिये इटावा में वयस्त होने के कारण फिलहाल मुख्यमंत्री की अभी तक टिप्पणी नहीं आयी है, लेकिन अखिलेश यादव के करीबियों का कहना है कि भईयां भी कोई तगड़ा शॉट मारेंगे।
फैसले पर मच चुका हैं बवंडर
पिछली बार शिवपाल सिंह यादव ने कौएद के विलय के मामले में जल्दबाजी दिखाते हुये सीधे खुद ही ऐलान कर डाला था। उनका यह फैसला सीएम को पूरी तरह नागवार लगा और चंद घंटो के अन्दर ही कैबिनेट मंत्री बलराम सिंह यादव को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर अपना खुला विरोध दर्ज करा दिया था।
सीएम को संदेह था कि कौएद के सपा में विलय कराने में बलराम सिंह यादव की अहम भूमिका है। श्री यादव की बर्खास्तगी के बाद भी अखिलेश यादव का गुस्सा ठंडा नहीं पडा और उन्होनें विलय का फैसला वापस होने के बाद ही राहत की सांस ली थी।
सूत्रों का कहना है कि इस बार के विलय में शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव का सहारा लेते हुये अखिलेश यादव की सहमति का बयान देकर विरोध होने की संभावनाओं को विराम देने की कोशिश की है।
सीएम को नापसंद आने वाला लिया गया चौथा फैसला
सपा के कुछ समय के अतीत को झांकने से पता चलता है कि यह लगातार चौथा मौका है, जब अखिलेश यादव को नापसंद आने वाला फैसला लिया गया है। सपा कुनबे की जंग के थमने के बाद सबसे पहले पार्टी प्रमुख ने अपने हाथ से राज्यसभा सदस्य अमर सिंह को राष्टीय महासचिव बनाये जाने का पत्र लिख बेटे अखिलेश यादव को नसीहत दी थी।
घमासान के दौरान प्रोफेसर रामगोपाल यादव तथा अखिलेश यादव ने अमर सिंह को विलेन के रूप में पेश करने की कोशिश की थी और माना जा रहा था कि अमर सिंह की पार्टी से विदाई हो सकती है। मुलायम सिंह यादव के फैसले ने तस्वीर ही बदल दी थी।
इसके बाद शिवपाल सिंह यादव ने विधान परिषद के तीन सदस्यो सहित अखिलेश यादव के कई करीबी नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। बर्खास्तगी के बाद चर्चित गायत्री प्रसाद प्रजापति की भी चंद दिनों में मंत्रिमंडल में वापसी हो गई। इसके अलावा शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव के कुछ करीबियों के विधानसभा टिकट भी हाल ही में काट दिये थे। इन फैसलों का सीएम ने इशारों ही इशारों में विरोध भी किया हैं।