आरयू वेब टीम।
देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यह याचिका केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 20 दिसंबर को जारी की गई अधिसूचना के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें मोदी सरकार ने दस जांच एजेंसियों को किसी भी कंप्यूटर की जांच करने की अनुमति दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करने के बाद केंद्र सरकार को छह हफ्तों में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। बता दें कि गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने मोदी सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून के तहत केंद्र की दस जांच एवं जासूसी एजेंसियों को कंप्यूटरों को इंटरसेप्ट करने और उनके आंकड़ों का विश्लेषण करने का अधिकार दिया है।
इस आदेश के तहत सरकार किसी भी कंप्यूटर का डेटा खंगाल सकती है। ये पहली बार है जब कई एजेंसियों को ऐसे अधिकार दिए गए हैं। मोदी सरकार के इस आदेश के बाद से विपक्ष ने हमला बोलना शुरू कर दिया है। साथ ही विपक्ष ने इसे निजता के अधिकार पर हमला भी बताया। इसका विरोध करते हुए आप सांसद ने इसे जनता की निजता का हनन करार दिया है। साथ ही यह भी कहा कि प्रधानमंत्री इसके जरिए विपक्षियों के कंप्यूटर में दखल के बाद टैपिंग कराकर हमले और लिंचिंग करा सकते हैं।
वहीं मोदी सरकार के आदेश पर हमला बोलते हुए कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि सरकार का यह आदेश मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। इस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार भी यह निजता आपका मौलिक अधिकार है। निजता के अधिकार पर यह आदेश चोट पहुंचाता है।
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इस आदेश से सरकार देश के हर नागरिक की पूरी जानकारी को देखने की अनुमति दे रही है। सरकार की तरफ से एक भारी संख्या में जो सम्मानित लोग हैं, सांसद हैं या बड़े अधिकारी या सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जज के टेलीफोन भी चेक हो रहे हैं। यह किसी भी प्रजातंत्र के लिए स्वीकार्य नहीं है।
मालूम हो कि गृह मंत्रालय का आदेश के मुताबिक 10 केंद्रीय एजेंसियों डेटा की जांच, फोन टैपिंग करने का अधिकार प्राप्त है। इसके तहत एजेंसियां किसी भी कंप्यूटर के डेटा की जांच कर सकेंगे।
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