आरयू वेब टीम।
तीन तलाक के ऐतिहासिक मामले पर आज फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ में से तीन जजो ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। जस्टिस जोसेफ कुरियन, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस फली नरीमन ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कहा कि इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है।
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वहीं इस मामले में चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला है, इसलिए इसे एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता। इस मुद्दे पर सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है संसद और केंद्र सरकार, उन्हें ही इस पर कानून बनाना चाहिए। सरकार को कानून बनाकर इस पर एक स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करने चाहिए। चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार को छह महीने का समय देते हुए इस मामले में कानून बनाने को कहा है।
वहीं जेएस खेहर ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए छह महीने तक के लिए तीन तलाक पर तत्काल रोक लगाती है। इस अवधि में देशभर में कहीं भी तीन तलाक मान्य नहीं होगा।
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वहीं सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के हिमायतियों को भी कुछ राहत देते हुए उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार जो कानून बनाएगी उसमें मुस्लिम संगठनों और शरिया कानून संबंधी चिंताओं का खयाल रखा जाएगा। न्यायालय ने राजनीतिक दलों से अपने मतभेदों को दरकिनार रखने और तीन तलाक के संबंध में कानून बनाने में केन्द्र की मदद करने को भी कहा है। न्यायालय ने कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किये जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता।
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तीन तलाक मुद्दे पर गेंद अब केंद्र सरकार के पाले में है और उसे छह महीने के अंदर कानून बनाना होगा। मोदी सरकार के लिए इस मामले में अब राह आसान भी है, क्योंकि लोकसभा में उसका बहुमत पहले से है और अब राज्यसभा में भी वह बहुमत की स्थिति में लगभग आ गयी है।
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प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने गर्मियों की छुट्टियों के दौरान छह दिन सुनवाई के बाद 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि वह संभवत: बहुविवाह के मुद्दे पर विचार नहीं करेगी और कहा कि वह केवल इस विषय पर गौर करेगी कि तीन तलाक मुस्लिमों द्वारा ‘लागू किये जाने लायक’ धर्म के मौलिक अधिकार का हिस्सा है या नहीं।
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