आरयू वेब टीम। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लगाए गए लॉकडाउन के बीच गरीबों और मजदूरों के पलायन और उनके खाने-पीने की व्यवस्था पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। माइग्रेंट वर्कर्स के रहने और खाने-पीने की सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अंतरराज्यीय आवाजाही पर पूरी तरह से प्रतिबंध है।
वकील एए श्रीवास्तव द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 22 लाख 88 हजार से अधिक लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। तुषार मेहता ने आगे कहा कि जरूरतमंद व्यक्ति, प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर हैं। उन्हें आश्रयों में रखा गया है। उन्होंने आगे कहा कि लॉकडाउन की वजह से पैनिक का हल निकालने के लिए परामर्श प्रदान करने पर विचार कर रहे हैं।
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जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार शेल्टर होम्स में रखे गए लोगों को समझाए। इसके लिए काउंसलर या धर्मों के नेता को लेकर समझाया जाए कि वायरस जीवन के लिए कितना खतरनाक है। मजदूरों के पलायन को रोका जाए। उनके भोजन और मेडिकल सुविधाओं का ध्यान रखा जाए और वायरस के मामलों का भी पालन किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासियों के मुद्दे को हाई कोर्ट में उठाने पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि वे इस मुद्दे की अधिक बारीकी से निगरानी कर सकते हैं।
साथ ही पीठ ने केंद्र से यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा कि शेल्टर होम्स में प्रवासियों की जिम्मेदारी वॉलिंटियर्स संभाले, न कि पुलिस वहां हो। उनके साथ किसी बल या धमकी का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 24 घंटे के भीतर कोरोना वायरस पर सूचना के लिए एक पोर्टल और एक्सपर्ट्स की कमेटी का गठन करने को कहा है ताकि फर्जी खबरों के जरिए फैलाई जा रही दहशत को रोका जा सके।
बता दें कि लॉकडाउन के बीच मजदूरों के पलायन को लेकर वकील एए अलख की ओर से दायर याचिका पर सोमवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दहशत और डर की वजह से पलायन बड़ी समस्या बन रहा है। याचिका पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब दाखिल करने के लिए कहा था।