आरयू वेब टीम।
मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक लगाने के लिए लाए गए मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018 को गुरुवार को शीतकालीन सत्र के 10वें दिन पास कर दिया गया है। वहीं इसके विरोध में आज कांग्रेस सहित विपक्ष की अन्य पार्टियों ने वॉकआउट किया। साथ ही विधेयक में सजा के प्रावधान का कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया और इसे संयुक्त प्रवर समिति में भेजने की मांग की।
हालांकि सरकार ने दावा किया है कि यह विधेयक किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं, बल्कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए लाया गया है। सदन ने एनके प्रेमचंद्रन के सांविधिक संकल्प एवं कुछ सदस्यों के संशोधनों को नामंजूर करते हुए महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2018 को मंजूरी दे दी। विधेयक पर मत विभाजन के दौरान इसके पक्ष में 245 वोट और विपक्ष में 11 मत पड़े।
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कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के विधेयक पर चर्चा के जवाब के बाद कांग्रेस, सपा, राजद, राकांपा, तृणमूल कांग्रेस, तेदेपा, अन्नाद्रमुक, टीआरएस, एआइयूडीएफ ने सदन से वाकआउट किया। प्रेमचंद्रन के सांविधिक संकल्प में 19 दिसंबर 2018 को प्रख्यापित मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश 2018 का निरनुमोदन करने की बात कही गई है।
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इसे राजनीति के तराजू पर तौलने की बजाय इंसाफ के तराजू पर तौलने की जरूरत है। उनकी सरकार के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण वोट बैंक का विषय नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि हम मानते हैं कि महिलाओं का सम्मान होना चाहिए। प्रसाद ने विधेयक को संयुक्त प्रवर समिति को भेजने की विपक्ष मांग को खारिज किया। उन्होंने कहा कि इसे प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग के पीछे एक ही कारण है कि इसे आपराधिक क्यों बनाया गया।
समाज को तोड़ने वाला है बिल
इस दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मेरी गुजारिश है कि बिल को ज्वाइंट सलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाए। 15 दिन में इस पर रिपोर्ट तलब हो। उन्होंने कहा कि सरकार किसी धार्मिक मामले में हस्तक्षेप कर रही है। इस बिल से करोड़ों महिलाएं प्रभावित होंगी और उनकी रक्षा जरूरी है। यह बिल समाज को जोड़ने के बजाय तोड़ने वाला है। यह संविधान के खिलाफ हैं, मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है। आर्टिकल 21 और 25 का उल्लंघन भी करता है। साथ ही कांग्रेस, टीएमसी समेत कई अन्य दलों के सांसद तीन तलाक बिल को ज्वाइंट सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की।
ओवैसी के संशोधन प्रस्ताव गिरे
वहीं एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी संसद में तीन तलाक बिल के विरोध में तमाम तर्कों के साथ अपना मत रखा। हालांकि उनके संशोधन प्रस्ताव सदन में खारिज हो गए।
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बताते चलें कि इससे पहले दिसंबर 2017 में भी लोकसभा से तीन तलाक बिल को मंजूरी मिल गई थी, लेकिन राज्यसभा में गिर गया था। इसके बाद सरकार को तीन तलाक पर अध्यादेश लाना पड़ा था। अब सरकार ने एक बार फिर से संशोधित बिल पेश किया था, लेकिन सरकार के लिए राज्यसभा से इसे पारित कराना चुनौती होगी, क्योंकि वहां एनडीए का बहुमत नहीं है।