आरयू वेब टीम। कोरोना काल में अभिभावकों के बढ़े आर्थिक बोझ को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। मंगलवार को देश की सबसे बड़ी अदालत ने अभिभावकों की वित्तीय स्थिति के मद्देनजर 10वीं और 12वीं के छात्रों का परीक्षा शुल्क माफ करने का केंद्रीय माध्यमिक परीक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और दिल्ली सरकार को निर्देश दिये जाने संबंधी याचिका निरस्त कर दी है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 28 सितंबर के आदेश के खिलाफ गैर-सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की याचिका यह कहते हुए ठुकरा दी कि वह इस तरह का निर्देश नहीं दे सकती। शीर्ष अदालत ने सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से पेश वकील अशोक अग्रवाल से कहा कि कोई अदालत सरकार को ऐसा करने का निर्देश कैसे दे सकती है? न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, “आपको सरकार को यह प्रतिवेदन देना चाहिए। यह याचिका खारिज की जाती है।’’
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याचिकाकर्ता एनजीओ की तरफ से वकील अशोक अग्रवाल ने जजों को बताया कि यह 30 लाख छात्रों से जुड़ा मामला है। इनमें से एक बड़ी संख्या ऐसे छात्रों की है जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं हैं। उनसे परीक्षा फीस नहीं ली जानी चाहिए, लेकिन जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इन दलीलों से आश्वस्त नहीं हुई। अग्रवाल ने इस साल फीस बढ़ाए जाने का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अगर फीस माफ न भी हो, तब भी कम से कम पुरानी फीस ही ली जाए, लेकिन कोर्ट ने इस पर भी आदेश देने से मना कर दिया।
मालूम हो कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता ने इस याचिका को केजरीवाल सरकार और सीबीएसई के समक्ष प्रतिवेदन के रूप में देने का निर्देश दिया था।
इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस मसले पर राहत देने से मना कर दिया था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि उन्होंने दिल्ली सरकार से राज्य के छात्रों की एक्जामिनेशन फीस भरने का आग्रह किया था, लेकिन सरकार ने मना कर दिया। कहा कि इस आर्थिक बोझ को उठाने में वह सक्षम नहीं है। इस पर जजों ने कहा- सरकार अपने संसाधनों के आधार पर निर्णय लेती है. इसमें कोर्ट दखल नहीं दे सकता।