आरयू ब्यूरो,लखनऊ। चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद रालोद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की वर्चुअल बैठक में मंगलवार को सर्वसम्मति से जयंत चौधरी को राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) का अध्यक्ष चुन लिया गया है। जयंत चौधरी ने अध्यक्ष पद संभालते ही संयुक्त किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कार्यकर्ताओं से बुधवार को इसमें बड़ी संख्या में भाग लेने का आह्वान किया है।
साथ ही जयंत चौधरी ने सरकार से मांग की है कि किसानों से वार्ता कर समस्या का जल्द कोई हल निकाले। बैठक में पार्टी सुप्रीमो अजित सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। देश में फैली कोरोना महामारी को लेकर जयंत चौधरी ने चिंता जताई। इससे निपटने के लिए गांवों में घर-घर टीकाकरण अभियान चलाए जाने की जरूरत पर बल दिया। कहा कि टीकाकरण के लिए पंजीकरण को सुलभ बनाने की भी आवश्यकता है।
बैठक में राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने जयंत चौधरी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया। पूर्व सांसद एवं राष्ट्रीय महासचिव मुंशीराम पाल ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया। सभी कार्यकारिणी 34 सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया। इसके बाद जयंत चौधरी ने सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने चौधरी चरण सिंह और अजित सिंह के बताए रास्ते पर चलते हुए गांव-किसानों के हित के लिए सदैव संघर्ष का संकल्प लिया।
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वहीं बैठक में पंचायत चुनाव के नतीजों की समीक्षा करते हुए संतोष व्यक्त किया गया। महाराष्ट्र, गोवा और गुजरात में चक्रवाती तूफान से होने वाले नुकसान पर दुख भी जाहिर किया। कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में तन-मन से जुट जाएं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह की किसानों की सियासत अब जयंत चौधरी के हाथ में है। बिना किसी सांसद-विधायक की पार्टी को मजबूती से खड़ा करना जयंत के लिए बड़ी चुनौती है।
गौरतलब है कि 1999 में राष्ट्रीय लोकदल का गठन चौधरी अजित सिंह ने किया था। वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। चौ. अजित सिंह के निधन के बाद राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने आज पार्टी के सभी 37 राष्ट्रीय पदाधिकारियों के साथ ऑनलाइन बैठक की। इस बैठक में जयंत को अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा हो गई है। इस समय पार्टी में अध्यक्ष जयंत चौधरी के अलावा आठ राष्ट्रीय महासचिव, 14 सचिव, तीन प्रवक्ता और 11 कार्यकारिणी सदस्यों समेत 37 पदाधिकारी हैं। 15 साल के अपने राजनीतिक जीवन में जयंत ने पिता के बिना पहली बार कोई बैठक की है।