आरयू वेब टीम,
नई दिल्ली। लंबे समय के इंतजार के बाद आज सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष रहे सभी पक्षकारों से कहा कि वे उनके द्वारा अपील के साथ दाखिल दस्तावेजों का अंग्रेजी रूपांतरण दो सप्ताह के भीतर दाखिल करें।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायमूर्ति एसए नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 14 मार्च को सुनवाई की जाएगी। साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया कि उसका इरादा इस मामले को कभी भी रोजाना सुनने का नहीं रहा है।
भूमि विवाद के रूप में देखा जाएगा मामला
पीठ ने कहा कि वह इस मामले को विशुद्ध रूप से ‘भूमि विवाद’ के रूप में सुनेगी और उसने संकेत दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष जो लोग नहीं थे उनकी इसमें पक्षकार बनने के लिये दायर अर्जियों को बाद मे देखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भावनात्मक और राजनीतिक दलीलें नहीं सुनी जाएंगी। यह केवल कानूनी मामला है।
100 करोड़ हिंदुओं की भावनाओं का ध्यान रखने की दलील दी गई थी। कोर्ट में 87 सबूतों को जमा किया गया है। इसमें रामायण और गीता भी शामिल है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उन भाषाई पुस्तकों का, जिन्हें इस मामले में आधार बनाया गया है, अंग्रेजी में रूपांतरण कराया जाए और इन्हें आज से दो सप्ताह के भीतर दाखिल किया जाए।
वहीं पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय के रिकार्ड का हिस्सा रहे वीडियो कैसेट की प्रतियां संबंधित पक्षकारों को वास्तविक लागत पर उपलब्ध कराई जाये। विशेष पीठ के समक्ष मालिकाना हक को लेकर चार वादों में सुनाये गए फैसले के खिलाफ 14 अपील विचारार्थ हैं।
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बताते चलें कि उच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2010 में बहुमत के फैसले में विवादित भूमि को तीन समान भागों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में विभक्त करने का आदेश दिया था।
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