अखिलेश का अमित शाह को जवाब, नसीहत देने वाले पहले खुद पढ़े ले इतिहास, जनता के विरोध की आंधी के सामने कोई नहीं टिक पाया

रोगी सरकार

आरयू ब्‍यूरो, लखनऊ। नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में आयोजित भाजपा की जनसभा में शामिल होने पहुंचे गृह मंत्री के हमले का अखिलेश यादव ने जवाब दिया है। मंगलवार को अमित शाह की जनसभा के बाद यूपी के पूर्व सीएम ने मीडिया से कहा कि भाजपा अपनी जनविरोधी नीतियों के चलते लगातार अलोकप्रिय होती जा रही है। सीएए और एनआरसी को लेकर देशभर में असंतोष व जनाक्रोश के चलते प्रदर्शन हो रहा। इससे घबड़ाकर भाजपा नेतृत्व ने अब जनजागरण रैली और पदयात्रा के आयोजनों में अपनी ताकत झोंक दी है।

सपा अध्‍यक्ष ने आगे कहा कि आज लखनऊ में केंद्रीय गृह मंत्री की रैली के फ्लाप शो में गृह मंत्री के भाषण में उनकी हताशा साफ दिख रही थी जिसे छुपाने के लिए ही वे अहंकार की बोली बोल रहे थे। समाजवादी पार्टी की सलाह है कि भाजपा नेतृत्व लोकलाज छोड़, जनता की आवाज पहचाने। साथ ही धमकियों और अहंकार की भाषा से विपक्ष दबने वाला नहीं। वहीं अमित शाह द्वारा आज अखिलेश यादव को नागरिकता संशोधन कानून को पढ़ने की बात कहने पर सपा अध्‍यक्ष ने जवाब दिया कि दूसरों को नसीहतें देने वाले पहले खुद इतिहास पढ़ लें कि जनता के विरोध की आंधी के सामने कोई नहीं टिक पाया है।

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अखिलेश ने अमित शाह पर हमला जारी रखते हुए कहा कि लोकतंत्र की मूलभावना से खिलवाड़ करते हुए भाजपा नेता असहिष्णुता को ही अपनी पहचान बनाने में लगे हैं। यह कहना कि हर हाल में हम सीएए, एनआरसी, एनपीआर को लागू करेंगे, जताता है कि भाजपा की मंशा अपने बहुमत के रोड रोलर से जनता को कुचलने का तानाशाही कदम उठाने की है, लेकिन भाजपा व आरएसएस का यह एजेंडा चलने वाला नहीं है।

वहीं अखिलेश ने आज गृह मंत्री द्वारा महात्‍मा गांधी का जिक्र किए जाने का उल्‍लेख करते हुए कहा कि अमित शाह बेकार ही गांधी जी का नाम लेकर जनता को भरमाने की साजिश कर रहे हैं। गांधी जी देश में भाजपा की तरह नफरत की राजनीति नहीं करते थे और समाज को बांटने की बात वे स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे।

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सपा अध्‍यक्ष ने आगे कहा कि वास्तविकता यह है कि दोबारा सत्‍ता में आने पर भाजपा नेतृत्व को जरूरत से ज्यादा घमंड हो गया है। लोकतंत्र में केवल बहुमत नहीं लोकमत की भी अहम भूमिका होती है। लोकमत की अनदेखी से सत्ता की साख नहीं रहती है। भाजपा की जिन कुनीतियों का देशव्यापी विरोध हो रहा है, उसके प्रति संवेदनहीनता का प्रदर्शन लोकतंत्र की स्वस्थ भावना नहीं और यह संविधान की मूल भावना की अवमानना करना भी है।

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मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए अखिलेश ने कहा कि सच तो यह है कि देश की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। मंदी की छाया गहरी होती जा रही है। नोटबंदी-जीएसटी ने उद्योग-धंधे चौपट कर दिए हैं। रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि एक साल पहले की तुलना में 16 लाख नौकरियां कम होने जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो बताता है कि साल 2018 में हर दिन औसतन 35 बेरोजगार और 36 स्वरोजगार वालों ने आत्महत्याएं की। इन दोनों श्रेणियों के 26,085 लोगों ने अपनी जाने गंवाई। देश में कुल 1,34,516 लोगों ने फांसी लगाई है। इनमें कृषि क्षेत्र से 10,349 लोगों ने आत्महत्या की। इससे साफ है कि देश के सामने जो गंभीर चुनौतियां हैं उनका हल निकालने में भाजपा की न तो रूचि है और न ही नीति। वह जनता को मूल समस्याओं से भटकाने के लिए ही सीएए, एनआरसी, एनपीआर जैसे मामले उछालकर सत्‍ता में मनमानी कायम रखना चाहती है।

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