आरयू ब्यूरो, लखनऊ। कोरोना वायरस की वजहें से लागू लॉकडाउन की त्रासदी झेल रहे मजदूरों की समस्याओं को लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर हमला बोला है। अखिलेश ने रविवार को सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि भाजपा सरकार का आदेश है कि प्रवासी मजदूरों को उत्तर प्रदेश की सीमा में न घुसने दें, न रेल ट्रैक पर चलने दें, न ट्रक-दुपहिया से जाने दें। भाजपा की गरीब विरोधी नीतियां ही यह सब करा रहीं हैं। अच्छा हो, सरकार गरीब की जिंदगी पर ही राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगा दे।
सपा अध्यक्ष ने हमला जारी रखते हुए आज अपने बयान में कहा कि दतिया, झांसी, जालौन, कानपुर, गाजियाबाद, सहारनपुर की सीमाओं पर तबाही के शिकार श्रमिकों का कसूर क्या है? राज्य की सीमाओं पर क्या कोई विदेशी हमला होने वाला है? क्या अपने राज्य के कामगार विदेशी है? उन्नाव में सड़क जाम है। प्रशासन ने दस किलोमीटर का जाम क्यों लगाया? इसका जवाब तो टीम-इलेवन को देना पड़ेगा। सिर पर सामान नदी को पार करते श्रमिकों का जत्था क्या यही उत्तर प्रदेश का परिचय है? ये सभी कितनी बेबसी के शिकार है। ऐसा तो बेगानों के साथ भी दुव्र्यवहार नहीं होता है।
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वहीं अखिलेश ने सवाल उठाते यह भी कहा कि अगर सरकार का गरीब मजदूरों के प्रति ऐसा ही दुर्भावनापूर्ण और उपेक्षापूर्ण व्यवहार बना रहा तो भला किसके भरोसे पर ये प्रवासी मजदूर काम पर वापस लौटेंगे? अमीरों की इस सरकार ने अब तो श्रमकानूनों का रक्षा कवच भी छीन लिया है। प्रदेश में प्रशासन की पंगुता से जैसी अफरा-तफरी मची है उससे साबित होता है कि ‘‘समाज में दूरी‘‘ पैदा करने वाली भाजपा का सारा ध्यान कोरोना नियंत्रण और गरीब को रोजी-रोटी की सुविधा देने पर नहीं अपनी चुनावी चालों पर है।
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आज के समय की आजादी के दौर से तुलना करते हुए सपा अध्यक्ष ने कहा कि मजदूर और कामगार बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। 1947 के बाद भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं आयी। जिनसे न्याय की उम्मीद है वही सरकार अन्याय और असहनीय पीड़ा पहुंचा रही है। बे-सहारों पर लाठियां बरसाई जा रही, यह घोर अमानवीय कृत्य है। इस संकट का जिम्मेदार कौन है? आखिर 54 दिन से केंद्र और राज्य सरकारें क्या करती रहीं?