आरयू वेब टीम।
अदालत ने नाबालिग से बलात्कार के आरोपित आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। वहीं उनके सहयोगियों को 20-20 साल की सजा मिली है। जोधपुर की एससी/एसटी अदालत ने बुधवार सुबह आसाराम सहित उनके दो सेवादारों को इस मामले में दोषी करार दिया है।
विशेष जज मधुसूदन शर्मा ने जोधपुर जेल में ही अदालत लगाकर आसाराम के साथ शिल्पी और शरतचंद्र को दोषी ठहराया है, जबकि प्रमुख सेवादार शिवा और रसोइया प्रकाश को बरी कर दिया। साढ़े चार साल से जोधपुर जेल में बंद आसाराम के खिलाफ अपनी ही शिष्या के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा था।
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फैसले के बाद पीड़िता के पिता ने कहा हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा था और हमें खुशी है कि न्याय मिला। उन्होंने कहा कि परिवार लगातार दहशत में जी रहा था और इसका उनके व्यापार पर भी काफी असर पड़ा।
आसाराम मामले में अंतिम सुनवाई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मामलों की विशेष अदालत में सात अप्रैल को पूरी हो गई थी और फैसला 25 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रखा गया था।
सुरक्षा के साथ गोपनीयता का भी रखा ख्याल
वहीं राम रहीम के जेल जाने के बाद भड़की हिंसा से सबक लेते हुए आज आसाराम की जेल के अंदर सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गयी थी। जहां कोर्ट के अंदर जज और आरोपितों के अलावा केस से जुड़े 14 वकील और कोर्ट के स्टाफ को जाने की इजाजत मिली। वहीं गोपनीयता के तौर पर जहां कोर्ट लगी है उससे काफी दूरी पर सभी वकीलों और कोर्ट स्टाफ के फोन भी जमा करवा लिए गए थे।
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ये था मामला
बताते चलें कि यूपी के शाहजहांपुर जिले की एक किशोरी की शिकायत पर आसाराम को गिरफ्तार किया गया था। किशोरी मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में आसाराम के आश्रम में पढ़ाई कर रही थी। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आसाराम ने जोधपुर के मनाई इलाके में स्थित अपने आश्रम में उसे बुलाया और 15 अगस्त 2013 की रात में उसके साथ बलात्कार किया।
किशोरी के इस आरोप के बाद देश भर में हंगामा मच गया था। आसाराम से नजदीकी रखने वाले नेता भी उनसे पीछे छुड़ाकर भागते नजर आएं। हालांकि आसाराम के कुछ समर्थकों ने जरूर उनका साथ दिया था। इन सबके बीच आसाराम को इंदौर में गिरफ्तार किया गया और एक सितंबर 2013 को जोधपुर लाया गया। वह दो सितंबर 2013 से न्यायिक हिरासत में रहें।
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