आरयू ब्यूरो, लखनऊ। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) व एनपीआर के खिलाफ सूबे की राजधानी लखनऊ के घंटाघर के नीचे 66 दिनों से धरना दे रहीं महिलाओं ने सोमवार को आखिरकार अपना धरना स्थागित कर दिया है। महिलाओं के इस फैसले के बाद पुलिस, प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने राहत की सांस ली है।
रविवार को कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देश भर में लगाए गए जनता कर्फ्यू के दौरान भी धरना देने वाली महिलाओं ने सोमवार को कोरोना वायरस के खतरे की गंभीरता को समझते हुए खुद ही धरना स्थागित करने का निर्णय लेकर पुलिस कमिश्नर सुजीत कुमार पांडेय को एक पत्र लिखकर इससे अवगत कराया।
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प्रदर्शनकारी महिलाओं ने धरनास्थल पर मंच व धरने के सांकेतिक रुप में अपना-अपना दुपट्टा छोड़ते हुए कहा है कि कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे को देखते हुए उन्होंने अपना धरना स्थागित किया है। कोरोना वायरस के खतरे से संबंधित जब भी सरकारी आदेश समाप्त हो जाएंगे, वह लोग फिर आकर अपने धरनास्थल पर पहले की तरह बैठ जाएंगी।
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इसके लिए वह लोग अपने मंच व दुपट्टों को सांकेतिक रुप से छोड़कर जा रहीं हैं। साथ ही महिलाएं प्रशासन से भी अनुरोघ करतीं हैं कि उनके सांकेतिक धरने की यथास्थिति बनाएं रखने में सहयोग करें।
वहीं महिलाओं के समाप्त करने की घोषणा के बाद मौके पर पहुंचे पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों ने महिलाओं को अपनी निगरानी में घर पहुंचवाया। दूसरी ओर महिलाओं के प्रदर्शन स्थल से हटने के बाद प्रशासन ने घंटाघर के इलाके को सैनिटाइज करवाया।
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बताते चलें कि दिल्ली के शहीन बाग की तर्ज पर घंटाघर के नीचे 17 जनवरी से महिलाएं सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ धरना दे रहीं थीं। इस दौरान कई बार पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों ने कभी समझाकर तो कभी बलपूर्वक धरना समाप्त कराना चाहा, लेकिन कई मुकदमें दर्ज होने व लाठी-डंडे खाने के बाद भी महिलाएं अपनी जगह से नहीं हटी थीं।
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हाल के दिनों में बढ़ते कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए पुलिस प्रशासन के अलावा धर्म गुरुओं व सामाजिक और राजनीतिक लोगों ने भी समझाकर प्रदर्शन समाप्त कराना चाहा, लेकिन सफलता नहीं मिली थीं। इतना कुछ होने के बाद महिलाओं ने आज खुद ही धरना स्थागित कर कोरोना वायरस से होने वाले खतरे से अपने साथ ही शहरवासियों की जिंदगी को खतरें में जाने से कुछ हद तक रोक दिया है।