आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। चिनहट इलाके के अपट्रॉन इंडस्ट्रीयल क्षेत्र में आज कीटनाशक बनाने वाले एक फैक्ट्री से गैस का रिसाव होने से हड़कंप मच गया। गैस की चपेट में आने से दो कर्मचारियों की हालत बिगड़ गई। अफरा-तफरी के माहौल में दोनों मजदूरों को इंदिरानगर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। वहीं दूसरी ओर चिनहट पुलिस गैस रिसाव की बात से ही इंकार कर रही है।
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मिली जानकारी के अनुसार इंडस्ट्रियल एरिया में कीटनाशक बनाने वाली इंडिया पेस्टीसाइड्स लिमिटेड नाम से फैक्ट्री है। पूर्वान्ह करीब दर्जन भर कर्मचारी पैकेट में दवा भर रहे थे। तभी गैस रिसाव होने से वहां काम कर रहे गोण्डा जनपद के जयसिंह पुर निवासी अमर बहादुर के बेटे संदीप (32) और उन्नाव जिले के मोराव निवासी राकेश सैनी के पुत्र उमेश (34) उमेश उल्टियां करने के साथ ही बेहोश हो गए। यह देख साथ काम कर रहे कर्मचारियों में हड़कंप मच गया। साथियों ने दोनों कर्मचारियों को लोहिया अस्पताल पहुंचाया। जहां हालत गंभीर देख डॉक्टरों ने उन्हें रेफर कर दिया। जिसके बाद फैक्ट्री से जुड़े लोग संदीप और उमेश को लेकर इंदिरानगर क्षेत्र के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां उनकी हालत चिंताजनक बनी हुई है।
मीडियाकर्मियों के सवालों के बाद मौके पर पहुंची पुलिस कोरम पूरा कर लौटी
घटना के कई घंटे बाद तक चिनहट पुलिस इसकी जानकारी होने से ही इंकार करती रही। बाद में लगातार मीडियाकर्मियों के फोन घनघनाने पर चिनहट पुलिस फैक्ट्री पहुंची। यहां भी पुलिस सिर्फ नाम पता नोट कर लौट आई। फैक्ट्री से लौटे चिनहट के कार्यवाहक एसओ ने गैस रिसाव की बात से अनभिज्ञता जताने के साथ ही उमेश और संदीप के पैकिंग करने के दौरान कीटनाशक के सांस की नली के जरिए पेट में पहुंचने पर हालत बिगड़ने की बात कही है। चिनहट पुलिस का यह भी कहना है कि अभी तक पीडि़तों ने शिकायत नहीं की है, शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।
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पहले भी हो चुके है हादसे, अवैध कमाई नहीं निभाने देती जिम्मेदारी
बताते चले कि इससे पहले भी चिनहट इलाके में इस तरह के कई हादसे हो चुके है। मानकों को ताख पर रखकर चल रही छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों में दुर्घटनाओें के चलते कई कर्मचारियों की जाने तक जा चुकी हैं। लेकिन इन वैध-अवैध फैक्ट्रियों से पुलिस महकमे से लेकर दूसरे विभागों में पहुंचने वाली मासिक अवैध कमाई की वजह से सबकुछ जानने के बाद भी जिम्मेदार आंख बंद किए बैठे है। जिम्मेदारों की इसी कारस्तानी की वजह से जान हथेली पर रखकर आज भी हजारों कर्मचारी अपना व परिवार का पेट भरने के लिए काम करने को मजबूर हैं।
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