आरयू एक्सक्लूसिव,
लखनऊ। प्राइवेट कंपनी राईटर के प्रेम में उलझे लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अपनी फाइलों के साथ एक बार फिर बड़ी लापरवाही कर दी है। इस बार हजार दो हजार नहीं बल्कि अपनी एक लाख से ज्यादा बेशकीमती फाइलों को बिना सही लिखा-पढ़ी के ही राईटर कंपनी को सौंप दी है। मामला खुलने के साथ ही ढेरों गड़बड़ियां सामने आने पर अब जिम्मेदार जवाब देने से भाग रहें हैं।
कई महीनों से रिकॉर्ड रूम का प्रभार संभालने वाले तहसीलदार राजेश शुक्ला की माने तो उन्हें ये तक नहीं मालूम की फाइलों को किसके आदेश से वह प्राइवेट कंपनी को सौंप रहें हैं। हालांकि वह ये जरूर मान रहें हैं कि अब तक करीब 90 हजार फाइलें लालबाग और 20 हजार फाइलें एलडीए के गोमतीनगर स्थित कार्यालय से राईटर को दी जा चुकी है।
वहीं कंपनी को किए गए पेमेंट और उसकी दर के बारे में भी जानकारी देने की जगह उन्होंने कंपनी के काम से जुड़ी फाइल वित्त विभाग में होने की बात कही। जबकि इस बारे में वित्त नियंत्रक राजीव कुमार ने बताया कि उनके पास एक महीने पहले फाइल भेजी गयी थी, लेकिन आपत्ति के साथ उन्होंने राजेश शुक्ला को वापस लौटा दी थी।
ले जाने के लिए नहीं हुआ था कोई अनुबंध!
एलडीए के एक अधिकारी ने नाम नहीं सामने लाने की शर्त पर बताया कि कंपनी से अनुबंध फाइलों की स्कैनिंग कर उसका डेटा एलडीए को सौंपने का हुआ था। इसके साथ ही कंपनी को पुरानी फाइलों के कागजों को भी ठीक करना था। अनुबंध में फाइलों को एलडीए से बाहर ले जाने की कोई बात नहीं थी।
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तो इसलिए हुई मनमानी?
सूत्र बताते हैं कि फाइलों की स्कैनिंग और रिपेयरिंग में पर्याप्त कमीशन नहीं मिलता देख। एलडीए के पास जगह और कर्मचारी होने के बाद भी अधिकारियों ने कंपनी को फाइलों को उसके गोदाम में ले जाने की भी इजाजत दे दी। जिसके बदले में एलडीए ने कंपनी को गोदाम का किराया, फाइलों की पैकिंग, यहां तक की अपनी ही एक फाइल को देखने के एवज में भी 53 रुपए तक देना शुरू कर दिया। जबकि आरटीआइ के द्वारा किसी के सूचना मांगने पर एलडीए को खुद मात्र दस रुपए ही मिलते हैं। इतना ही नहीं एलडीए प्राइवेट कंपनी को हर महीनें सेवा कर, स्वच्छ भारत सेस और कृषि कल्याण सेस के नाम पर भी लाखों रुपए महीनें में भुगतान कर रहा है।
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बड़ी संख्या में फाइलें कर दी गयी गायब!
हालांकि फाइलों को एलडीए के बाहर भेजने के पीछे बड़ी साजिश रची जाने का अंदेशा जताया जा रहा है। एलडीए के अन्य सूत्रों का कहना है कि संपत्तियों का फर्जी समायोजन व फर्जी भुगतान करने वालों में अहम भूमिका निभाने वाले अधिकारी, इंजीनियरों व कर्मचारियों ने इस बीच खुद को फंसाने वाली फाइलों को गायब कर दिया है। यहीं वजह है तमाम तरह के घोटाले तो सामने आ रहें हैं, लेकिन उनसे जुड़े दस्तावेज ढूंढे नहीं मिल रहें। हाल ही में रेंट विभाग की सैकड़ों फाइलों का नहीं मिलना भी इस आशंका को बल दे रहा है।
फाइलें भी नहीं दे पा रही कंपनी
वहीं ये बात भी सामने आयी है कि फाइलें भी कंपनी समय पर नहीं दे पा रही है। अपनी ही फाइलों के लिए एलडीए के अधिकारियों को कंपनी को कई बार लेटर लिखना पड़ रहा है। इसके अलावा फाइलों से पेज गायब होने और एक फाइल के पन्ने दूसरे में लगे होने के मामले भी सामने आ चुके हैं।
फाइलें ले जाने के बारे में एलडीए खुलने पर सोमवार को एग्रीमेंट देखने के बाद ही बता पाऊंगा। रही बात कंपनी के फाइलें नहीं देने की तो ऐसी शिकायत किसी ने अभी तक मुझसे नहीं की है। कंपनी अगर सही से काम नहीं कर रही है तो उसका अनुबंध कैंसिल कर ब्लैक लिस्टिड भी किया जा सकता है। सरकारी दस्तावेजों से किसी को भी खिलवाड़ करने नहीं दिया जाएगा। एमपी सिंह, एलडीए सचिव
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