प्रोफेसर के काशी विश्‍वनाथ पर दिए बयान के विरोध में ABVP ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में किया प्रदर्शन, लगाए नारे

लखनऊ यूनिवर्सिटी
प्रदर्शन करते एबीवीपी के छात्र।

आरयू ब्यूरो, लखनऊ। काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर लखनऊ यूनिवर्सिटी के एक एसोसिएट प्रोफेसर द्वारा दिये गये बयान के बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्रों ने जमकर विरोध-प्रदर्शन किया और जमकर नारे बाजी की। वहीं यूनिवर्सिटी के दूसरे शिक्षक भी प्रोफेसर रविकांत के बयान को बेहद शर्मनाक बता रहे हैं। लखनऊ यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ (लूटा) ने प्रोफेसर रविकांत के बयान को निंदनीय बताते हुए कड़े शब्दों में निंदा की है।

जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रविकांत ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और स्वतंत्रता सेनानी दिवंगत पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक “पंख और पत्थर” का हवाला देते हुए कहा कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर को इसलिए ध्वस्त कर दिया था, क्योंकि कथिततौर पर वहां व्यभिचार हुआ था। प्रोफेसर रविकांत इस बयान के बाद बुरी तरह फंस गए। इसको लेकर यूनिवर्सिटी के अन्य शिक्षक और छात्र संगठन एबीवीपी ने मंगलवार को उनका कड़ा विरोध किया। इसके साथ ही एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने यूनिवर्सिटी में धरना दिया और यूनिवर्सिटी से मांग की कि वो प्रोफेसर रविकांत को अविलंब निलंबित करें।

हिन्दी विभाग के सामने विरोध प्रदर्शन करते हुए छात्रों का कहना था कि प्रोफेसर रविकांत ने काशी विश्वनाथ मंदिर के विषय में बहुत ही आपत्तिजनक टिप्पणी की है। इसलिए उनके खिलाफ यूनिवर्सिटी प्रशासन सख्त एक्शन ले और उन्हें तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करे। धरने-प्रदर्शन की जानकारी होते ही मौके पर पहुंचे चीफ प्राक्टर प्रोफेसर राकेश द्विवेदी ने फौरन पुलिस बुला ली और इस समय पीएसी के जवान पूरे कैंपस में तैनात हैं। छात्र प्रोफेसर रविकांत के खिलाफ नारे लगे रहे हैं, “देश के गद्दारों को …. गोली मारो …. को”।

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विवाद के मामले में प्रोफेसर ने कहा कि उन्होंने बस पट्टाभि सीतारमैया की किताब का हवाला दिया है और वह उनकी पुस्तक में लिखी बातों की पुष्टि नहीं कर रहे हैं। पुस्तक “पंख और पत्थर” की एक कहानी में ऐसा कहा गया है कि जब औरंगजेब वाराणसी से गुजर रहा था तो उसे मंदिर में हो रहे व्यभिचार के बारे में पता चला और इस कारण उसने मंदिर को गिराने का फरमान जारी किया। यह सारी बातें उस पुस्तक में है।

प्रोफेसर रविकांत ने कहा, “मैंने तो केवल किताब का हवाला दिया है। मेरा इरादा किसी की भावनाओं को आहत करने का नहीं था। मैं एक दलित हूं और बाबा साहेब के संविधान के मूल्यों का पालन करता हूं। मेरी आवाज को दबाया जा रहा है।” वहीं विवाद को बढ़ता हुआ देख लखनऊ पुलिस ने मामले में हस्तक्षेप किया और यूनिवर्सिटी प्रशासन के हस्तक्षेप किया।

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