आरयू एक्सपोज,
लखनऊ। लंबे समय से लखनऊ विकास प्राधिकरण और उसके फाइलों को सहेजने का जिम्मा लेने वाली पीएन राईटर एण्ड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के बीच किए गए करार पर चल रही सस्पेंस की स्थिति गुरुवार को साफ हो गयी। बिना किसी अनुबंध के एलडीए द्वारा राईटर को अपनी एक लाख से ज्यादा बेशकीमती फाइलें देने का मुद्दा ‘राजधानी अपडेट डॉट कॉम’ के उठाने के 14 दिन बाद आज एलडीए सचिव ने भी मान लिया कि उन्हें कंपनी और एलडीए के बीच ऐसा कोई अनुबंध नहीं मिला है, जिसमें फाइलों को ले जाने की बात हो।
जानें क्या हुआ था तय
सरकारी संस्था नेशनल इंफोर्मेटिक्स सेंटर सर्विसेज इंर्कोपोरेटड (निक्सी) के जरिए राईटर तक पहुंचे एलडीए को फाइलों के दो करोड़ पेजों को स्कैन कराकर कंपनी से डेटा लेना था। साथ ही कंपनी को फाइलों के खराब हो रहे पन्नों को मेंटेन भी करना था। पेजों की संख्या का अनुमान एलडीए ने फाइलों की संख्या के आधार पर लगाया था।
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दो करोड़ पेजों के लिए करना था करीब दो करोड़ का भुगतान, दरें थी ये
स्कैनिंग के लिए प्रति 40 पैसे की दर से एक करोड़ 60 लाख रुपए, जबकि मेंटेनेंस के नाम पर औसतन तीन पैसे प्रति पेज की दर से दो करोड़ पेजों का छह लाख रुपए का भुगतान होना था। इसके अलावा कुल एक करोड़ 66 लाख के भुगतान पर एलडीए को 14 प्रतिशत की दर से 23 लाख 24 हजार रुपए व स्वच्छ भारत सेस (एसबीसी) और कृषि कल्याण सेस (केकेसी) के रुप में आधा-आधा प्रतिशत यानि की 83-83 हजार रुपए और अदा करने थे। कुल मिलाकर एलडीए को एक करोड़ 90 लाख 90 हजार रुपए का भुगतान करना था।
चार महीनें में पूरा होना था, काम 13 महीने बाद भी जारी
निक्सी की ओर से जारी डक्यूमेंट के अनुसार इन दो करोड़ पेजों के स्कैनिंग और मेंटेन करने का काम राईटर को दस फरवरी 2017 से दस जून 2017 तक पूरा करना था। हालांकि सबकुछ जानने के बाद भी एलडीए के अफसरों की ढिलाई के चलते 13 महीने बीत जाने पर भी स्कैनिंग का काम आज भी जारी है।
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ऐसी मेहरबानी! मालिक नहीं था एलडीए फिर भी दे दी ये फाइलें
जानकार बताते हैं कि एलडीए ने अपने गोमतीनगर स्थित मुख्यालय और लालबाग कार्यालय से नजूल, ट्रस्ट, रेंट, संपत्ति, निर्माण समेत दूसरे विभागों की एक लाख से ज्यादा फाइलें राईटर को ट्रांस्पोर्टनगर स्थित कार्यालय में ले जाने के लिए दे दी है। जबकि नजूल और ट्रस्ट की संपत्तियों व उसकी फाइलों का मालिक जिला प्रशासन होता है। एलडीए से अगर फाइलें नहीं संभल रही थी तो वह जिला प्रशासन से भी संपर्क कर सकता था। वहीं एलडीए के संपत्तियों की बात हटा भी दी जाए तो राजधानी में अरबों रुपए की संपत्ति सिर्फ नजूल और ट्रस्ट की है जिनकी फाइलें एक प्राइवेट कंपनी के हाथों में एलडीए ने सौंप दी हैं।
एलडीए के इतिहास की सबसे बड़ी गड़बड़ी!
लखनऊ विकास प्राधिकरण के पुराने जानकार मानते हैं कि एलडीए गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात है, लेकिन इस बार बिना एग्रीमेंट और फाइलों की बिना पूरी जानकारी अपने पास रखें ही उसने एक प्राइवेट कंपनी को एक लाख से ज्यादा बेशकीती फाइलें सौंपकर अपने इतिहास की सबसे बड़ी गड़बड़ी की है।
जिम्मेदार अब भी छिपा रहें ये बातें-
इतनी बड़ी संख्या में एलडीए से फाइलें बाहर जाने देने के लिए कौन-कौन जिम्मेदार है-
कंपनी से कोई अनुबंध नहीं हुआ तो प्राइवेट कंपनी के गोदाम में हड़बड़ी में फाइलें क्यों भेजी गयी-
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अब तक कंपनी को कितना और किन दरों पर भुगतान किया गया-
अपनी ही फाइलें को देखने के लिए भी प्राईवेट कंपनी को भुगतान करने का खाका कौन खीच रहा था-
ऐसे कई सवाल है जिनका जवाब तब नहीं मिल पा रहा है जब प्रदेश में पारदर्शिता पर पूरा जोर देने वाली योगी सरकार सत्ता में है। इतना ही नहीं एलडीए खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ही विभाग का एक हिस्सा है।
बताते चलें कि ‘राजधानी अपडेट डॉट कॉम’ ने बीते नौ मार्च को ‘एलडीए ही नहीं जानता किसके आदेश पर प्राइवेट कंपनी को दे दी एक लाख से ज्यादा फाइलें!’ शीर्षक से न्यूज पोस्ट कर बिना अनुबंध के ही एलडीए के अधिकारियों द्वारा राईटर को बेशकीमती फाइलें ले जाने का मामला उजागर किया था। जिस पर एलडीए सचिव ने मामले जांचने के बाद जवाब देने की बात कही थी।
फाइलों को एलडीए से राईटर द्वारा ले जाने का कोई अनुबंध नहीं मिल सका है। मामले की जांच कराने के साथ ही सरकारी दस्तावेज को सेफ करने का प्लॉन तैयार किया जा रहा है। एमपी सिंह, एलडीए सचिव