आरयू वेब टीम।
गोरक्षा के नाम पर देश में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या यानी ‘मॉब लिंचिंग’ की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा आदेश दिया है। इस संबंध में अदालत ने संसद से ‘मॉब लिंचिंग’ के खिलाफ नया और सख्त कानून बनाने का आदेश देते हुए कहा कि कोई भी नागरिक अपने आप में कानून नहीं बन सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती। ये राज्य सरकारों का फर्ज है कि वो कानून व्यस्था बनाए रखें। सुप्रीम कोर्ट ने गोरक्षा के नाम पर हुई हत्याओं के सिलसिले में प्रिवेंटिव, रेमिडियल और प्यूनिटिव दिशा निर्देश जारी करते हुए कहा कि संसद को इसके लिए कानून बनाना चाहिए, जिसमें भीड़ द्वारा हत्या के लिए सजा का प्रावधान हो। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को इन दिशा निर्देशों को चार हफ्ते के भीतर लागू करने का आदेश दिया। तीन जुलाई को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले की अगली सुनवाई अगस्त में होगी।
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बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान सीजेआइ दीपक मिश्रा ने कहा था कि ‘मॉब लिंचिंग’ जैसी हिंसा की वारदातें नहीं होनी चाहिए चाहे कानून हो या नहीं। कोई भी ग्रुप कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। ये राज्यों का दायित्व है कि वो इस तरह की वारदातें न होने दे।
वहीं ‘मॉब लिंचिंग’ के पीड़ितों को मुआवजे के लिए इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि धर्म, जाति और लिंग को ध्यान मे रखा जाए, लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा ये उचित नहीं। पीड़ित सिर्फ पीड़ित होता है, उसे अलग-अलग खांचे में नहीं बांटा जा सकता। इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि अब तो असामाजिक तत्वों का मनोबल बढ़ गया है। वो गाय से आगे बढ़कर बच्चा चोरी का आरोप लगाकर खुद ही कानून हाथ में लेकर लोगों को मार रहे हैं।
याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े ने इन घटनाओं से निपटने और घटना होने के बाद अपनाए जाने वाले कदमों पर विस्तृत सुझाव कोर्ट के सामने रखे थे। ये सुझाव मानव सुरक्षा कानून (मासुका) पर आधारित हैं। सुझावों में नोडल अधिकारी, हाइवे पेट्रोल, एफआइआर, चार्जशीट और जांच अधिकारियों की नियुक्ति जैसे कदम शामिल हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। राज्यों के चीफ सेकेट्री से पूछा था कि क्यों ना उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाए। इतना ही नहीं तुषार गांधी की याचिका में कहा गया है कि पिछले साल छह सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर कहा था कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा की घटनाओं पर रोक लगनी चाहिए और हर जिले में नोडल अफसर बनाए जाएं। इसके बावजूद इन तीन राज्यों में गौरक्षा के नाम पर हिंसा की वारदातें हो रही हैं। याचिका में ऐसी सात घटनाओं का जिक्र भी किया गया है।
वहीं गौरक्षा के नाम पर बने संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वो प्राइवेट लोगों द्वारा किसी भी विजिलेंटिज्म को समर्थन नहीं करती, लेकिन कानून-व्यवस्था राज्य सरकारों का काम है।
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