आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। ईमानदार आईएएस अधिकारी अनुराग तिवारी के विसरे को कबाड़ के जार में भरने के साथ ही उनके पोस्टमॉर्टम में भारी गड़बड़ी करने के मामले में चर्चां में चल रही केजीएमयू की मॉच्युरी में आज इंसनियत को तार-तार करने वाली घटना सामने आई। पैसे की हवस में अंधे हो चुके मॉच्युरी के कर्मचारियों ने दोनों पैरों से विकलांग 35 वर्षीय भिखारी की लाश देने के बदले पांच सौ रुपए की गरीब परिजनों से मांग कर दी।
पास में पैसा नहीं होने की वजह से कई घंटे बाद भी लाश नहीं मिली तो परिजनों ने हंगामा कर दिया। हंगामें से बैकफुट पर आए मॉच्युरी कर्मचारियों ने लगभग सड़ चुकी लाश का पोस्टमॉर्टम कर परिजनों को सौंपा।
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मिली जानकारी के अनुसार मूल रूप से लखीमपुर खीरी निवासी लालता प्रसाद, (35) दोनों पैरों से विकलांग होने के साथ ही चौक इलाके में कई महीनों से भीख मांगकर अपना गुजारा कर रहा था। छोटे भाई पंकज ने बताया कि कल दिन में हम लोगों को सूचना मिली कि भाई की किसी वजह से मौत हो गई है। उसकी लाश पोस्टमॉर्टम हाउस में रखी है। जिसके बाद सोमवार शाम हम लोग केजीएमयू पहुंचे तो सुबह बुलाया गया।
आज सुबह करीब आठ ही बजे पंकज अपनी बूढ़ी मां पुष्पा देवी, पांच साल के भांजे, बहनोई मुन्ना लाल समेत अन्य परिजनों के साथ मॉच्युरी पहुंचा। अपरान्ह करीब चार बजे तक लालता प्रसाद की लाश नहीं मिली तो परिजनों ने मॉच्युरी पर ही हंगामा शुरू कर दिया।
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मुन्ना लाल ने कहा कि हमारे बाद आए आठ शवों का पोस्टमॉर्टम कर दे दिया गया, लेकिन हम लोगों से लगातार पांच सौ रुपए की मांग की जा रही है। पास में पैसे होते तो दे भी दिए होते, लेकिन यह बताने के बाद भी हम लोगों को बार-बार टरकाया जा रहा है। हंगामा होने के बाद शाम को परिजनों को शव मिल सका।
लापरवाही ऐसी की बहन आखिरी बार नहीं देख पाई लालता का चेहरा
कल लालता की लाश मिलने के बाद कर्मचारियों ने उसे कूड़े की तरह फर्श पर ही रखवा दिया। यही वजह रही कि बिन फ्रिजर के लाश आज शाम तक खराब हो गई। पोस्टमॉर्टम के बाद परिजन लालता का अंतिम संस्कार करने लखीमपुर ले जाना चाहते थे, लेकिन लाश से भीषण दुर्गंध उठने की वजह से वह नहीं ले जा सके।
भाई पंकज ने बताया कि बहन रीना समेत अन्य परिजन व गांववाले लालता का अंतिम दर्शन के लिए इंतजार कर रहे थे, लेकिन शव की स्थिति की वजह से लखनऊ में ही अंतिम संस्कार करना पड़ा इतना कहते ही पंकज फफक पड़ा।
हद है, सात महिनों से सड़ाया जा रहा है शव
बताते चलें कि शवों को रखने के लिए पोस्टमॉर्टम हाउस में फ्रिजर भी है। सूत्र बताते हैं कि फ्रिजर एक दो दिन नहीं बल्कि पिछले छह-सात माह से खराब है। इस भीषण गर्मी में एक से दो दिन में ही लाश को पहचानना मुश्किल हो जा रहा है। कई बार परिजन इसके लिए मॉच्युरी पर हंगामा भी कर चुके हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों ने अब तक फ्रिजर सही कराना जरूरी नहीं समझा। जिसके बदले जनता को कभी नहीं भूलने वाला खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
क्या केजीएमयू प्रशासन खा रहा लाशों की दलाली!
बेहद संवेदनशील जगह मानी जाने वाली मॉच्युरी मे यह सब लंबे समय से चल रहा है, हर लाश के बदले चार से पांच सौ तक की वसूली के बाद ही शव परिजनों को सौंपा जाता है। यह खेल कितनी मजबूती से खेला जाता है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि वसूली के लिए बदनाम पुलिस वालों से भी यहां वसूली हो जाती है।
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मॉच्युरी के सूत्र बताते हैं कि लाशों के बदले वसूली के साथ ही यहां पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तक बदले जाने का खेल चलता रहता है। जिसके एवज में केजीएमयू के ही वरिष्ठों तक वसूली का हिस्सा पहुंचता है। यहीं वजह है कि यहां जल्दी कार्रवाई नहीं की जाती। मामला उठता भी है तो मैनेज कर दिया जाता है।
कुछ समय पहले मॉच्युरी में नाबालिग को नौकरी देने का मामला मीडिया में चर्चा में आया तो प्रभारी फामॉसिस्ट एसएस पवार को वहां से हटा दिया गया, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही पवार के हवाले फिर से मॉच्युरी कर दी गई।
मामला बेहद गंभीर है, इस पर वीसी साहब से बात करने के साथ ही पूरे मामले की जांच कराई कराकर जल्द से जल्द गड़बडि़या दूर की जाएंगी। केजीएमयू कुलसचिव, उमेश मिश्रा।