आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। सीएम से लेकर डिप्टी सीएम व अधिकारियों के साथ बैठकों के अलावा तमाम प्रयासों और संघर्षों के बाद भी सात सालों से नियुक्ति का इंतजार कर रहे बीएड टीईटी 2011 के अभ्यर्थियों ने सूबे की राजधानी लखनऊ में आंदोलन करने का ऐलान किया है। आर पार के मूड में नजर आ रहें अभ्यर्थियों ने प्रदर्शन शुरू करने के लिए शिक्षक दिवस यानि पांच सितंबर का दिन चुना है। शिक्षक दिवस के मौके एक बार फिर ईको गार्डेन में प्रदेश भर के अभ्यर्थी अपनी मांगों को मनवाने के लिए प्रदर्शन शुरू करेंगे।
प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले अभ्यर्थी मान बहादुर सिंह चंदेल ने बताया कि मुख्यमंत्री की ओर से गठित कमेटी लगातार समय काट रही है। सरकार की ओर से कभी 45 दिन कभी 20 दिन तो कभी 15 दिन का समय मांगा गया, लेकिन हर बार मामले को टाल दिया गया। बीते 20 अगस्त को डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा ने नियुक्ति के अभ्यर्थियों के सामने अध्यापक भर्ती परीक्षा में भाग लेने की शर्त रख दी, जो किसी भी नजरिए से न्याय संगत नहीं है।
ये है पूरा मामला-
मान बहादुर ने बताया कि प्रत्येक अभ्यर्थी ने सात दिसंबर 2012 से ही आवेदन शुल्क के रूप में औसतन करीब 35 हजार अभ्यर्थी जमा किया था। जिसके बाद एक दिन की काउंसलिंग प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी थी।
वहीं 25 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामले पर अपना अंतिम फैसला देते हुए सरकार को लिबर्टी भी दी थी कि सरकार सभी अंतरिम आदेशों को सुरक्षित रखते हुए नए विज्ञापन पर भर्ती कर सकती है।
इतना ही नहीं लंबित मामले की सुनवाई के दौरान 24 फरवरी 2016 को कोर्ट में उपस्थित समस्त याचियों की नियुक्ति का आदेश भी सुप्रीम कोर्ट ने सात दिसंबर 2015 के आदेश के अनुसार दिया, लेकिन उसका अनुपालन सरकार ने नहीं किया अगली दो क्रमागत सुनवाई 24 अगस्त 2016 तथा 17 नवम्बर 2016 को एक बार फिर याचियों की नियुक्ति का आदेश दिया था, लेकिन नियुक्ति देने की जगह अब तक बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी लगातार मामले को उलझा रहें हैं।
मान बहादुर ने कहा कि हाल की स्थिति और इन तमाम बिन्दुओं को देखते हुए संगठन के नीलेश शुक्ला, आशीष सिंह, सुनील यादव, अरविन्द राजपूत, रामकुमार पटेल, अरुण शामली, चन्द्रशेखर सिंह, धर्मेंद्र प्रताप सिंह व सपना त्रिपाठी समेत अन्य अभ्यर्थियों की सहमति से प्रदेश भर के अभ्यर्थी शिक्षक दिवस से अपना विशाल प्रदर्शन शुरू करेंगे।
इस बार ये प्रदर्शन किसी आश्वासन की जगह सरकार की ओर से ठोस निर्णय आने के बाद ही समाप्त होगा। आवश्यकता पड़ने पर अभ्यर्थी आमरण अनशन करने के साथ ही अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर भी उतरने को मजबूर होंगे, जिसकी पूरी जिम्मेदारी अभ्यर्थियों और सरकार को भ्रमित करने वाले शिक्षा विभाग के अधिकारियों की होगी।
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