सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज फातिमा बीवी का 96 साल की उम्र में निधन

आरयू वेब टीम। सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश और तमिलनाडु की पूर्व राज्यपाल न्यायमूर्ति फातिमा बीवी का गुरुवार को एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। फातिमा बीवी 96 वर्ष की थीं। राज्य की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि जस्टिस फातिमा का निधन बेहद दर्दनाक है।

मंत्री वीना ने कहा कि न्यायमूर्ति फातिमा ने उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश और तमिलनाडु की राज्यपाल के रूप में अपनी छाप छोड़ी है। जॉर्ज ने एक बयान में कहा कि वह एक बहादुर महिला थीं, जिनके नाम कई रिकॉर्ड थे। मंत्री ने आगे कहा कि वह एक ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने जीवन से दिखाया कि इच्छाशक्ति और उद्देश्य की भावना से किसी भी विपरीत परिस्थिति को पार किया जा सकता है।

बता दें कि एम. फातिमा बीबी का नाम उन चुनिंदा महिलाओं में लिया जाता है जिन्होंने पुरुष प्रधान न्यायतंत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाया है। फातिमा बीबी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट का जज़ नियुक्त किया गया। साल 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना होने के बाद देश को पहली महिला जज मिलने में 39 साल लग गए थे। इससे पहले वह साल 1983 में केरल हाई कोर्ट में जज के पद पर नियुक्त की गई थीं।

फातिमा बीवी के बारे में

फातिमा बीबी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 में केरल के पत्तनम्तिट्टा में हुआ था। उनके पिता का नाम मीरा साहिब और मां का नाम खदीजा बीबी है। उनकी शुरुआती शिक्षा पत्तनम्तिट्टा के ही कैथीलोकेट स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। जस्टिस फातिमा बीवी ने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री प्राप्त की और 14 नवंबर 1950 को एक वकील के रूप में दाखिला लिया।

उन्होंने 1950 में केरल की निचली न्यायपालिका में अपना करियर शुरू किया और जल्द ही केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में मुंसिफ के रूप में, एक अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में, एक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में, एक जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के न्यायिक सदस्य के रूप में सेवा की। न्यायमूर्ति बीवी 1983 में उच्च न्यायालय और 1989 में उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बनीं। वह किसी भी उच्च न्यायपालिका में नियुक्त होने वाली पहली मुस्लिम न्यायाधीश भी थीं।

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अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, न्यायमूर्ति बीवी ने पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के रूप में कार्य किया, बाद में उन्हें तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया। न्यायमूर्ति बीवी ने राज्य के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में भी कार्य किया।

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