आरयू वेब टीम। देश की सबसे बड़ी अदालत ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण के मानकों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। सुप्रीन कोर्ट ने कहा, सुप्रीम कोर्ट कि 2006 और 2018 में संविधान पीठ ने जो फैसले किए है उनमें हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते। इसके लिए हम कोई नया पैमाना नहीं बना सकती है। कोर्ट ने राज्य सरकारों को मात्रात्मक डेटा का संग्रह करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर बीते साल 2021 के अक्टूबर महीने में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अटार्नी जनरल, एडिशनल सॉलिसीटर जनरल समेत सभी की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने जो बात कही थी उसके अनुसार, आजादी के 75 सालों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को जनरल क्लास के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि, इतने सालों के बाद भी एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग को लोगों के लिए ए ग्रेड की नौकरी में उच्च पद प्राप्त करना बहुत कठिन है।
बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को लोगों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के मुद्दे को यह कहकर मना कर दिया था कि यह राज्यों का मुद्दा है। कोर्ट ने कहा था कि यह राज्यों को तय करना है कि इसे कैसे लागू करना है।