आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। फीस के नाम पर प्राइवेट स्कूलों की लूट और मनमानी से अगर आप हैं परेशान तो जल्द ही इससे निजात मिलने की उम्मीद है। योगी सरकार ने इस पर नकेल कसने के लिए गुरुवार को उप्र स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क का विनियमन) विधेयक विधानसभा में पेश किया था, जिसे पास कर दिया गया है।
अब इस विधेयक को पारित होने के लिए विधान परिषद में भेजा जाएगा। वहां भी विधेयक के पास होने की पूरी उम्मीद है। इसके लागू होते ही हर साल होने वाली बेतहाशा फीस वृद्धि से अभिभावकों को राहत मिलना तय है।
इस बिधेयक के तहत स्कूल कैंपस के कॉमर्शियल इस्तेमाल को भी स्कूल की आमदनी माना गया है। वहीं ड्राफ्ट में अभिभावकों की शिकायतों के लिए जोनल शुल्क विनियामक समिति के गठन का भी प्रस्ताव है।
विधेयक के लागू होते ही मिलेगी ये राहत-
– छात्रों से एडमीशन फीस शुरूआत में दाखिला लेने पर ही लिया जाएगा। इसके बाद कक्षा नौ और 11 में छात्रों से एडमीशन फीस स्कूल ले सकेगा। हर साल प्रवेश के नाम पर वसूली बंद हो जाएगी।
– फीस में बढ़ोतरी आय और व्यय के समानुपाती होगी।
– निजी स्कूलों में हर साल फीस वृद्धि का आधार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक होगा।
– स्कूल कक्षावार छात्रों की संख्या के आधार पर ताजा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में फीस का पांच प्रतिशत जोड़ते हुए शुल्क वृद्धि कर सकेगा।
– इसके अलावा शिक्षकों, कर्मचारियों की मासिक वेतन में हुई वृद्धि के औसत से अधिक फीस वृद्धि नहीं हो सकेगी।
– वहीं स्कूल कैंपस में व्यावसायिक गतिविधियों से कमाई स्कूल की आमदनी मानी जाएगी।
– कैपिटेशन फीस नहीं ली जाएगी।
– छात्र, अभिभावक या अभिभावक संघ की शिकायतों के लिए कमिश्नर की अध्यक्षता में जोनल शुल्क विनियामक समिति का गठन किया जाएगा।
– इस समिति के फैसले से असहमति होने पर पक्षकार राज्य स्ववित्तपोषित विद्यालय प्राधिकरण में अपील कर सकेंगे।
– फीस का अधिकतम 15 प्रतिशत स्कूल के विकास कार्यो पर खर्च किया जा सकता है।
– स्कूलों को आगामी सत्र की फीस 31 दिसंबर तक अपनी वेबसाइट और नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित करनी होगी।
– प्रस्तावित विधेयक विभिन्न बोर्ड के उन प्राइवेट स्कूलों के लिए है, जो छात्रों से 20 हजार से अधिक वार्षिक शुल्क लेते हैं।
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