आरयू ब्यूरो,
लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती अवैध खनन मामले को लेकर अखिलेश यादव के समर्थन में खुलकर सामने आयीं हैं। उन्होंने खनन के लंबित मामले में सीबीआइ की छापेमारी और उसकी आड़ में समाजवादी पार्टी के मुखिया से पूछताछ करने को राजनीतिक विद्वेष की भावना करार दिया है।
मायावती ने इसे चुनावी स्वार्थ की कार्रवाई बताते हुए कहा कि बीजेपी की इस प्रकार की घिनौनी राजनीति व चुनावी षड़यंत्र कोई नई बात नहीं है, बल्कि यह उनका पुराना हथकंडा है, जिसे देश की जनता अच्छी तरह से समझती है। खुद बसपा भी इसकी भुक्तभोगी रही है।
षडयंत्रों को विफल करने की जरूरत
बसपा सुप्रीमो ने सोमवार को अपने एक बयान में मीडिया से बताया कि उन्होंने इस मामले में अखिलेश यादव को फोन कर बात की और कहा कि बीजेपी द्वारा इस प्रकार की घिनौनी राजनीति व इनका चुनावी षड़यंत्र कोई नई बात नहीं है। इससे घबराने की बात नहीं है, बल्कि इसका डटकर मुकाबला कर षडयंत्र को विफल करने की जरूरत है।
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सपा-बसपा की सीधी मुलाकात से बौखलायी बीजेपी
भाजपा सरकार पर हमला जारी रखते हुए मायावती ने कहा कि जिस दिन सपा-बसपा के शीर्ष नेतृत्व की सीधी मुलाकात की खबर मीडिया में आम हुई, तो उसी दिन बौखलाहट में मोदी सरकार द्वारा लंबित पड़े खनन मामले में एक साथ सीबीआइ द्वारा अनेक स्थानों पर छापेमारी करवाई गई। साथ ही अखिलेश यादव से भी पूछताछ करने संबंधी खबर जानबूझकर फैलाई गई। यह चुनावी षड़यंत्र के तहत सपा-बसपा गठबंधन को बदनाम व प्रताड़ित करने की कार्रवाई नहीं तो और क्या है?
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बसपा सुप्रीमो ने सीबीआइ की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए ये भी कहा कि अगर ये राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित नहीं है तो सीबीआइ को पहले ही कार्रवाई करनी चाहिए थी। दूसरी ओर इस संबंध में भाजपा नेताओं के बयान पर सवाल उठाते हुए मायावती बोली की इस मामले में बीजेपी के मंत्री व नेता सीबीआइ के प्रवक्ता कब से बन गए हैं?
बीजेपी सरकारी मशीनरी का कर रही दुरूपयोगी
इस दौरान मायावती कांग्रेस को निशाने पर लेने से भी नहीं चूंकी, उन्होंने कहा कि कांग्रेस की तरह बीजेपी भी सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करते हुए अपने विरोधियों को फर्जी मामले में फंसाने में माहिर रही है। जब उत्तर प्रदेश की लोकसभा की 80 में से 60 सीटे बीएसपी ने बीजेपी को देना स्वीकार नहीं किया, तो उन्होंने ताज मामले में फर्जी तौर पर मुझे फंसा दिया था।
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जिसके फलस्वरूप बीएसपी मूवमेंट के हित को ध्यान में रखते हुए 26 अगस्त 2003 को उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के पद से मैंने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन फिर इसका सूद समेत बदला जनता ने लिया और साल 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा की पूर्ण बहुमत की पहली सरकार यूपी में बनवाई।