आरयू वेब टीम।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर जहां राजनीत और बयानबाजी तेज होती जा रही है, वहीं इन सबके बीच सोमवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की है, लेकिन ये सुनवाई कुछ मिनट ही चल पाई। जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या राम जन्मभूमि मालिकाना हक विवाद से जुड़ी अपीलों की सुनवाई को जनवरी के पहले सप्ताह तक के लिए टाल दिया। साथ ही तभी कोर्ट तय करेगा कि कौन सी पीठ अयोध्या मामले की सुनवाई करेगी। आज मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल एवं जस्टिस केएम जोसफ की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की।
आज सुनवाई विवादित भूमि को तीन भागों में बांटने वाले 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर होनी थी। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि ये मामला अर्जेंट सुनवाई के तहत नहीं सुना जा सकता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने 27 सितंबर को 1994 के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को पांच जजों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इंकार कर दिया।
इसमें कहा गया था कि ‘मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं’ है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। शीर्ष अदालत के तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और पूर्व का फैसला इस मामले में प्रासंगिक नहीं है।
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जस्टिस अशोक भूषण ने अपनी और तत्कालीन सीजेआइ दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि उसे यह देखना होगा कि 1994 में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने किस संदर्भ में यह फैसला सुनाया था। दूसरी ओर, बेंच के तीसरे सदस्य जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है और इसके लिए विस्तार से विचार की आवश्यकता है।
वहीं अदालत ने 27 सितंबर को कहा था कि भूमि विवाद पर दीवानी वाद की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ 29 अक्टूबर को करेगी। मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग है या नहीं, यह मुद्दा उस वक्त उठा जब तीन न्यायाधीशों की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।