जानें दस हजार रुपए के शासनादेश पर भड़के शिक्षामित्रों ने क्‍या कहा

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लक्ष्मण मेला मैदान में प्रदर्शन करते शिक्षामित्र। (फाइल फोटो)

आरयू ब्‍यूरो, 

लखनऊ। दस हजार रुपए मानदेय दिए जाने के शासनादेश जारी होने के बाद आज शिक्षामित्र भड़क गए। शिक्षामित्रों ने योगी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि खुद मुख्‍यमंत्री ने हम लोगों के मामले में न्‍याय करने के लिए पांच आईएएस अफसरों की कमेटी बनाई थी, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट आने से पहले ही शिक्षामित्रों का अहित करने के लिए लगातार फैसले लिए जा रहे है। जो किसी भी दृष्टि से न्‍याय संगत नहीं है।

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‘सुप्रीम कोर्ट ने कब कहा वेतनमान के बराबर न दिया जाए शिक्षामित्रों को मानदेय’

शासनादेश जारी होने के बाद आज उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष गाजी इमाम आला ने अपने एक बयान में कहा कि शिक्षामित्रों को 39 हजार रुपए वेतनमान मिलता था, जिसे घटाकर दस हजार कर दिया गया, जबकि हम लोगो ने प्रदेश सरकार के सामने सुप्रीम कोर्ट के सामने उस आदेश को रखा था जिसमें ‘समान कार्य समान वेतन’ की बात खुद सुप्रीमकोर्ट ने कही थी।

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साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कही नहीं कहा था कि शिक्षामित्रों को वेतनमान के बराबर मानदेय न दिया जाए। लेकिन इन सब बातों को किनारे करते हुए दस हजार रुपए का शासनादेश भी जारी कर दिया गया। यह सीधे-सीधे शिक्षामित्रों के हितों पर कुठाराघात है।

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प्रदेश अध्‍यक्ष ने आगे कहा कि यदि वेतनमान के बराबर मानदेय दिया गया होता तो राज्य सरकार न सिर्फ शिक्षामित्रों के परिवार के सामने आने वाले भारी संकट को टालती बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के उस आदेश का भी सम्‍मान हो जाता जिसमे समान कार्य समान वेतन की बात कही गई है।

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‘मंहगाई में आखिर कैसे चलेगा दस हजार रुपए में परिवार’

वहीं उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील भादौरिया ने कहा कि सरकार शिक्षामित्रों के साथ धोखा कर रही, जो शिक्षामित्र पिछले तीन साल से 39 हजार वेतन में अपना जीवन यापन कर रहा था वह इस मंहगाई के दौर में अपने परिवार का पेट मात्र दस हजार रुपए में कैसे भरेगा। वहीं संयुक्‍त परिवार चलाने वाले वाले शिक्षामित्रों की स्थिति तो और भी खराब हो जाएगी। प्रदेश सरकार सबका साथ सबका विकास की बात करती है, लेकिन लगता है कि सरकार शिक्षामित्रों को सबसे अलग समझती है। यही वजह है कि उसके विकास की बात तो दूर आम जिंदगी भी दूभर बनाने पर तुली है।

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‘क्‍या शिक्षामित्रों का पेट काटकर योगी सरकार भरेगी अपना खजाना’

बीते 25 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद से ही ‘समान कार्य समान वेतन’ के लिए संघर्ष कर रहे शिक्षामित्रों ने आज अपनी मेहनत पर पानी फिरता देख ढेरों सवाल उठाएं। हालांकि योगी सरकार का रूख और अपनी पारिवारिक स्थिति देखते हुए नाम सामने लाना बेहतर नहीं समझा।

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राजधानी के ही कुछ शिक्षामित्रों ने सवाल उठाते हुए कहा कि हम लोग सालों से बच्‍चों को पढ़ा रहे है, लेकिन अब हमें दस हजार रुपए देने की बात की जा रही है। क्‍या हम लोगों की योग्‍यता कम हो गई है। जबकि हम लोगों को वापस उन्‍हीं बच्‍चों को पढ़ाना है जिन्हें हम 39 हजार रुपए वेतन मिलने पर पढ़ाते थे। वहीं कुछ महिला शिक्षामित्रों का कहना है कि लगता है योगी सरकार अपना सारा खजाना शिक्षामित्रों का ही पेट काटकर भरना चाहती है।

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