आरयू ब्यूरो, लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण के बहुचर्चित जानकीपुरम योजना प्लॉट घोटाले में आखिरकार दशकों बाद फैसला आ गया है। सीबीआइ कोर्ट ने इसके लिए दोषी एलडीए के पूर्व संयुक्त सचिव को तीन साल, जबकि एक बर्खास्त बाबू समेत तीन दोषियों को चार-चार साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
कोर्ट ने चारों दोषियों पर कुल सवा लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। घोटाले में एक अभियुक्त को कोर्ट ने साक्ष्य के आभाव में बरी कर दिया है। सीबीआइ पश्चिम कोर्ट लखनऊ के स्पेशल जज ने साल 1987 से 1999 के बीच जानकीपुरम योजना के सेक्टर आइ में हुए 123 प्लॉटो के फर्जी आवंटन व रजिस्ट्री के मामले में यह फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने माना, अफसर से ज्यादा बाबू दोषी
सीबीआइ कोर्ट ने तीन साल कठोर कारावास की सजा पाने वाले एलडीए के तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह पर 35 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है, जबकि इसी मामले में एलडीए से कुछ साल पहले बर्खास्त हो चुके बाबू राज नारायण द्विवेदी को अधिक दोषी मानते हुए 60 हजार का जुर्माना लगाया है।
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इसके अलावा इस घोटाले में शामिल बाहरी व्यक्ति महेंद्र सिंह सेंगर व दिवाकर सिंह को बराबर का दोषी मानते हुए अदालत ने तीन-तीन साल की सजा व 15-15 हजार का जुर्माना देने का आदेश दिया है।
18 साल पहले सीबीआइ ने दर्ज किया था केस
करीब 37 साल पहले शुरू हुए प्लॉट घोटाले के इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के 21 फरवरी 2006 के आदेश पर सात दिन बाद 28 फरवरी को तत्कालीन संयुक्त सचिव आरएन सिंह व अन्य छह आरोपितों के खिलाफ सीबीआइ ने अपने यहां केस दर्ज किया था।
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यह था मामला-
सीबीआइ के अनुसार साल 1987 से 1999 के बीच एलडीए की जानकीपुरम योजना के 123 प्लॉट को संयुक्त सचिव और उप सचिव स्तर के अफसरों ने एलडीए के तत्कालीन प्रधान लिपिकों व अन्य बाबूओं की मिलीभगत से उन लोगों को आवंटित कर दिया था, जिन्होंने न तो रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरा था और न ही प्लॉट का पैसा एलडीए में जमा किया था।
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चार साल जांच के बाद चार्जशीट
करीब चार साल चली जांच के बाद छह फरवरी 2010 को तत्कालीन संयुक्त सचिव व बाबू समेत सात आरोपितों के खिलाफ सीबीआइ ने कोर्ट में आरोप पत्र दायर किया था। फिर 14 साल कोर्ट में केस चलने के बाद सीबीआइ कोर्ट ने चार आरोपितों को दोषी ठहराया और अब उन्हें सजा सुनाई है।
सुनवाई के दौरान हुई दो आरोपितों की मौत
इतनी लंबी चली कोर्ट की कार्रवाई के दौरान ही प्लॉट घोटाले के दो आरोपितों की मौत भी हो गयी। सीबीआइ कोर्ट ने इसके चलते उनके खिलाफ मुकदमा भी समाप्त कर दिया है, जबकि एक आरोपित राजू सिंह को न्यायालय ने साक्ष्यों के आभाव में आज बरी भी कर दिया है।
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बताते चलें कि एलडीए को अरबों रुपए की आर्थिक क्षति पहुंचाने वाले जानकीपुरम योजना के इस घोटाले में प्राधिकरण के कई अन्य कर्मियों व अफसरों की भी एक समय गर्दन फंसी थीं, लेकिन धीरे-धीरे सब किसी न किसी रास्ते से बचते चले गए। जानकारों की माने तो 123 भूखंडों के फर्जी आवंटन व रजिस्ट्री की लिस्टिंग की गयी थीं, जबकि फर्जीवाड़ा इससे कहीं ज्यादा भूखंडों में हुआ था।