किसान आंदोलन पर सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘राइट टू प्रोटेस्ट’ के अधिकार में नहीं कर सकते कटौती

कृषि कानून
फाइल फोटो।

आरयू वेब टीम। मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के विरोध में दाखिल की गयी याचिका के खिलाफ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि वो किसानों के प्रदर्शन करने के अधिकार को स्वीकार करती है और किसानों के ‘राइट टू प्रोटेस्ट’ के अधिकार में कटौती नहीं कर सकती है।

सुनवाई कर रहे चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि ‘हमें यह देखना होगा कि किसान अपना प्रदर्शन भी करे और लोगों के अधिकारों का उलंघन भी न हो।

वहीं सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन को लेकर सुनवाई टल गई है। कोर्ट में किसी किसान संगठन के ना होने के कारण कमेटी पर फैसला नहीं हो पाया। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वो किसानों से बात करके ही अपना फैसला सुनाएंगे। आगे इस मामले की सुनवाई दूसरी बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों की छुट्टी है, ऐसे में वैकेशन बेंच ही इसकी सुनवाई करेगी।

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कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि वो फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वो किसानों के विरोध प्रदर्शन और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लेकर है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है।

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि उनमें से कोई भी फेस मास्क नहीं पहनता है, वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं। कोविड-19 एक चिंता का विषय है, वे गांव जाएंगे और वहां कोरोना फैलाएंगे। किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।

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इस पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि दिल्ली को ब्लॉक करने से यहां के लोग भूखे रह सकते हैं। आपका(किसानों) मकसद बात करके पूरा हो सकता है। सिर्फ विरोध प्रदर्शन पर बैठने से कोई फायदा नहीं होगा।