तीसरी बार लोकसभा में पास हुआ तीन तलाक बिल, अब राज्यसभा में चुनौती

तीन तलाक बिल

आरयू वेब टीम। गुरुवार को हंगामें के बीच लोकसभा में आखिरकर तीन तलाक बिल पास हो गया। इसे द मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल कहा गया है। एआइएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की ओर से मांग किए गए संशोधन प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। कांग्रेस, टीएमसी सहित कई पार्टियों ने बिल के विरोध में सदन से वॉकआउट किया।

इससे पहले दिन भर सदन में बिल पर चर्चा हुई। कई पार्टियों ने बिल में पुरुष को तीन साल की सजा के प्रावधान और महिला को गुजारा भत्ता देने पर सवाल खड़े किए। यहां बताते चलें कि लोकसभा से पहली बार यह बिल 28 दिसंबर, 2017 तथा दूसरी बार 27 दिसंबर, 2018 में पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा से पारित नहीं हो सका। इस बार भी राज्यसभा में दलीय स्थिति देखते हुए बिल पास कराना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

वहीं आज चर्चा का जवाब देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पैगंबर मोहम्मद भी तीन तलाक के खिलाफ थे। एक बार उनके एक अनुयाई ने अपनी पत्नी को तीन तलाक दिया था, जिसके बाद वो काफी नाराज हो गए थे। अगर पैगंबर मोहम्मद ने इसको गलत माना है तो ओवैसी साहब को तीन तलाक की पीड़ित महिलाओं के साथ खड़ा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 345 केस सामने आए हैं। क्या हमें इन महिलाओं को सड़क पर छोड़ देना चाहिए? मैं नरेंद्र मोदी की सरकार में मंत्री हूं, राजीव गांधी की सरकार में नहीं।

मीनाक्षी लेखी और अखिलेश में नोक-झोंक

वहीं आज तीन तलाक पर बहस के दौरान बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी और सपा सांसद अखिलेश यादव के बीच तीखी बहस भी देखने को मिली। जब मीनाक्षी लेखी ने यूपी में तीन तलाक के बढ़ते मामलों के लिए अखिलेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि आपकी सरकार में शरिया अदालतें चलती रहीं और उनसे ऐसे मामलों को बढ़ावा मिला। अगर अखिलेश ने शरिया कोर्ट बंद कर दिए होते तो महिलाओं के साथ अन्याय नहीं होता, किस तरह के मुख्यमंत्री हैं ये।

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इस पर अखिलेश ने अपनी बात कहने की इजाजत मांगी लेकिन, चेयर की ओर से उन्हें बोलने नहीं दिया गया। इसे लेकर नोक-झोंक हुई। बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने इस पर कहा कि अखिलेश वरिष्ठ सदस्य हैं और उन्हें किसी महिला सांसद को बोलने से नहीं रोकना चाहिए बल्कि अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।

बिल में एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तलाक दिए जाने (तलाक-ए-बिद्दत) को अपराध करार दिया गया है और साथ ही दोषी को कारावास की सजा सुनाए जाने का भी प्रावधान किया गया है।

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मोदी सरकार ने मई में अपना दूसरा कार्यभार संभालने के बाद संसद के इस पहले सत्र में सबसे पहले विधेयक का मसौदा प्रस्तुत किया था। कई विपक्षी दलों ने इसका सख्त विरोध किया है मगर सरकार का यह कहना है कि यह विधेयक लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक कदम है।

नए विधेयक में ये हुए थे बदलाव

अध्यादेश के आधार पर तैयार नए बिल के अनुसार, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा। साथ ही मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य मुकदमा दर्ज कराएं।

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