RBI ने लगातार चौथी बार नहीं बदलीं ब्याज दरें, रेपो रेट 6.5 प्रतिशत पर बरकरार

आरबीआइ
मीडिया को जानकारी देते रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांता दास।

आरयू वेब टीम। रिजर्व बैंक ने लगातार चौथी बार रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर ही बरकरार रखा। रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांता दास ने कहा कि कमिटी के सभी छह सदस्यों ने पॉलिसी रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। पॉलिसी के फैसलों का ऐलान करते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांता दास ने बताया कि अकोमोडेशन रुख को वापस लेने के फैसले पर रिजर्व बैंक कायम है।

रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि महंगाई के लक्ष्य को हासिल करने के लिए छह में से पांच सदस्यों ने अकोमोडेशन की वापसी रुख को लेकर अपनी सहमति जताई है। गवर्नर शक्तिकांता ने कहा कि बैंक लोन और डिपॉजिट में 250 बीपीएस रेट हाइक का ट्रांसफर होना अभी बाकी है।

रेपो रेट के साथ ही स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) रेट को 6.25 प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) रेट को भी बिना बदलाव के 6.75 प्रतिशत पर रखा गया है। इस दौरान रिजर्व बैंक गवर्नर ने बताया कि हमारा लक्ष्य महंगाई को चार प्रतिशत पर लेकर आना है, अभी महंगाई दर छह प्रतिशत के ऊपर है , जो कि हमारी सीमा से ऊपर है। अगस्त में सब्जियों की महंगाई में कमी आई है, इसके सितंबर में और कम होने की उम्मीद है। इन सबके बीच देखने वाली बात ये है कि कोर महंगाई दर में कमी आई है। खरीफ की बुआई में गिरावट से कुल महंगाई आउटलुक पर असर पड़ा है।

महंगाई का बढ़ा हुआ स्तर

महंगाई का बढ़ा हुआ स्तर काफी हद तक खाद्य कीमतों से आया।

जुलाई में रिटेल महंगाई में सब्जियों का योगदान एक तिहाई और अगस्त में एक चौथाई था।

जुलाई-अगस्त में कोर महंगाई दर कम होकर 4.9 प्रतिशत पर आ गई।

जनवरी 2023 में अपने हालिया शिखर से इसमें 140 बीपीएस की कमी आई है।

सब्जियों की कीमत में सुधार और एलपीजी की कीमतों में कुछ दिन पहले हुई कटौती की वजह से निकट अवधि में महंगाई का आउटलुक सुधरने की उम्मीद है।

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वहीं इकोनॉमिक ग्रोथ पर रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि सख्त वित्तीय परिस्थितियों की वजह से ग्लोबल अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है, ग्लोबल ट्रेड में कमी आ रही है, हेडलाइन महंगाई में भले ही कमी है, लेकिन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के लक्ष्य से ऊपर है। सख्त मॉनिटरी पॉलिसी रुख ग्लोबल लेवल पर पहले के अनुमान से अधिक समय तक जारी रह सकता है। ग्लोबल ट्रेंड्स के उलट मजबूत घरेलू मांग के बीच घरेलू विकास लचीलापन दर्शाता है।

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