सोनिया गांधी का बड़ा ऐलान, कांग्रेस उठाएगी मजदूरों के रेल टिकट का खर्च, मोदी सरकार से भी पूछा जब…

राष्‍ट्रपिता व लाल बहादुर शास्‍त्री जयंती

आरयू वेब टीम। लॉकडाउन थ्री शुरू होने के पहले दिन सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने श्रमिकों की घर वापसी के लिए, उनसे लिए जा रहे किराए पर को लेकर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। साथ ही सोनिया गांधी ने घोषणा की हैै कि कांग्रेस मजदूरों के रेल टिकट का खर्च उठाएगी।

वहीं मोदी सरकार पर से भी सवाल करते हुए आज सोनिया गांधी ने पूछा है कि जब हम विदेशों में फंसे भारतीयों को अपना कर्तव्य समझकर हवाई जहाजों से निशुल्क वापस लेकर आ सकते हैं, गुजरात के केवल एक कार्यक्रम में सरकारी खजाने से सौ करोड़ रुपये ट्रांसपोर्ट व भोजन इत्यादि पर खर्च कर सकते हैं, जब रेल मंत्रालय प्रधानमंत्री के कोरोना फंड में 151 करोड़ रुपये दे सकता है, तो फिर तरक्की के इन ध्वजवाहकों (श्रमिकों) को आपदा की इस घड़ी में निशुल्क रेल यात्रा की सुविधा क्यों नहीं दे सकते?”

कांग्रेस ने मेहनतकश श्रमिकों और कामगारों की निःशुल्क रेलयात्रा की मांग बार-बार उठाया

आज इससे पहले सोनिया गांधी ने अपने बयान में कहा है कि कांग्रेस ने मेहनतकश श्रमिकों और कामगारों की निःशुल्क रेलयात्रा की मांग बार-बार उठाया है। दुर्भाग्य से न सरकार ने एक सुनी और न ही रेल मंत्रालय ने, जबकि देश और सरकार का कर्तव्य क्या है? आज भी लाखों श्रमिक व कामगार पूरे देश के अलग-अलग कोनों से घर वापस जाना चाहते हैं, पर उनके पास न साधन है और न पैसा। दुख की बात यह है कि भारत सरकार व रेल मंत्रालय इन मेहनतकशों से मुश्किल की इस घड़ी में रेल यात्रा का किराया वसूल रहे हैं।

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इसलिए, कांग्रेस ने यह निर्णय लिया है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी की हर इकाई हर जरूरतमंद श्रमिक व कामगार के घर लौटने की रेल यात्रा का टिकट खर्च वहन करेगी व इस बारे में जरूरी कदम उठाएगी। मेहनतकशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने के मानव सेवा के इस संकल्प में कांग्रेस का यह योगदान होगा।”

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सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल घर वापसी के लिए मजबूर

सोनिया ने आगे कहा कि श्रमिक व कामगार देश की रीढ़ की हड्डी हैं। उनकी मेहनत और कुर्बानी राष्ट्र निर्माण की नींव है। सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाऊन करने के कारण लाखों श्रमिक व कामगार घर वापस लौटने से वंचित हो गए। 1947 के बंटवारे के बाद देश ने पहली बार यह दिल दहलाने वाला मंजर देखा कि हजारों श्रमिक व कामगार सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल घर वापसी के लिए मजबूर हो गए। न राशन, न पैसा, न दवाई, न साधन, पर केवल अपने परिवार के पास वापस गांव पहुंचने की लगन। उनकी व्यथा सोचकर ही हर मन कांपा और फिर उनके दृढ़ निश्चय और संकल्प को हर भारतीय ने सराहा भी।

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