सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए नहीं कर सकते किसी को मजबूर, दुष्प्रभाव का ब्योरा भी करें सार्वजनिक

सुप्रीम कोर्ट

आरयू वेब टीम। भारत में एक बार फिर से कोरोना ने रफ्तार पकड़ ली है। देश में अब हर रोज तीन हजार से ज्यादा नए मरीज सामने आ रहे हैं। महामारी से मौतों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो गई है। महामारी के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान भी तेजी के साथ जारी है। अब कोरोना वैक्सीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने टीकाकरण को लेकर निर्देश देते हुए कहा कि किसी को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने टीकाकरण के दुष्प्रभाव का ब्योरा सार्वजनिक करने का भी निर्देश दिया, हालांकि कोर्ट ने कहा कि सरकार टीकाकरण पर नीति बना सकती है और बड़े सार्वजनिक अच्छे और स्वास्थ्य के लिए कुछ शर्तें लगा सकती है। कोर्ट ने साफ कहा कि वर्तमान वैक्सीनेशन नीति को अनुचित नहीं कहा जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार प्रतिकूल घटनाओं पर डेटा उपलब्ध कराए। बच्चों के लिए स्वीकृत टीकों पर प्रासंगिक डेटा भी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होना चाहिए। कोविड वैक्सीन संबंधी क्लीनिकल ट्रायल और प्रतिकूल घटनाओं का डेटा पब्लिक करे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार जनहित में लोगों को जागरूक कर सकती है, लेकिन टीका लगवाने और किसी तरह की खास दवा लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।

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साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि टीका लगवाना या ना लगवाना हर एक नागरिक का निजी फैसला है। किसी को भी कोई भी टीका लगवाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि वैक्सीन की अनिवार्यता के माध्यम से व्यक्तियों पर लगाए गए प्रतिबंधों को आनुपातिक और सही नहीं कहा जा सकता है। सरकारों ने यदि पहले से ऐसा कोई नियम या पाबंदी लगा रखी हो तो उसे वापस ले लें।

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