अडानी ग्रुप पर फिर लगा धोखाधड़ी का आरोप, गुपचुप शेयर खरीद किया गया लेनदेन

अडानी ग्रुप
फाइल फोटो।

आरयू इंटरनेशनल डेस्क। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी लोगों में गिने जाने वाले गौतम अडानी की अड़ानी ग्रुप एक बार फिर धोखाधड़ी के आरोपों के लेकर चर्चा में छा गयी है। संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग परियोजना (ओसीसीआरपी) ने गुरुवार को ताजा सबूतों के साथ एक खुलासा किया है जिससे संकेत मिलते हैं कि गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के करीबी लोगों और सहयोगियों ने गुपचुप तरीके से अडानी समूह की कंपनियों के शेयर खरीदे। हालांकि अडानी समूह इस साल मार्च तक विनोद अडानी की समूह में सक्रिय भूमिका से इनकार करता रहा है, लेकिन जो दस्तावेज सामने आए हैं कि समूह ने इस खरीदारी का इस्तेमाल शेयरों की कीमतों में हेरफेर करने के लिए किया था।

एक रिपोर्ट के अनुसार इसमें अडानी ग्रुप के मॉरीशस मे किए गए लेनदेन के बारे में खुलासा करने का दावा किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रुप की कंपनियों ने 2013 से 2018 के बीच गुपचुप तरीके से अपने शेयरों को खरीदा। ओसीसीआरपी का दावा है कि उसने मॉरीशस के रास्ते हुए लेनदेन और अडानी ग्रुप के इंटरनल ईमेल्स (अंदरूनी पत्राचार) को देखा है।

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उसका कहना है उसकी जांच में सामने आया है कि कम से कम दो मामले ऐसे हैं जहां निवेशकों ने विदेशी कंपनियों के जरिए अडानी ग्रुप के शेयर खरीदे और बेचे हैं। ओसीसीआरपी की रिपोर्ट में दो निवेशकों नसीर अली शाबान अहली और चांग चुंग-लिंग का नाम लिया गया है। दावा गया है कि ये दोनों अडानी परिवार के पुराने कारोबारी साझीदार हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक ओसीसीआरपी ने दावा किया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चांग और अहली ने जो पैसा लगाया है वह अडानी परिवार ने दिया था, लेकिन रिपोर्टिंग और डॉक्यूमेंट्स से साफ है कि अडानी ग्रुप में उनका निवेश अडानी परिवार के तालमेल से किया गया था।

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ओसीसीआरपी ने सवाल उठाया है कि क्या इसे उल्लंघन माना जाएगा या नहीं। और इसका जवाब तब तय होगा जब पता चले कि अहली और चांग प्रमोटर्स की तरफ से काम कर रहे हैं या नहीं। अहली और चांग ने ओसीसीआरपी की रिपोर्ट पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

अडानी ग्रुप ने किया आरोपों का खंडन 

इस बीच अडानी ग्रुप ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया है। ग्रुप ने कहा कि यह जॉर्ज सोरोस की मदद से चलने वाले संगठनों की हरकत लग रही है और विदेशी मीडिया का एक सेक्शन भी इसे हवा दे रहा है, ताकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जिन्न को फिर से खड़ा किया जा सके। ये दावे एक दशक पहले बंद हो चुके मामलों पर आधारित हैं। ग्रुप ने कहा है कि उस समय ओवर इनवॉइसिंग, विदेशों में फंड ट्रांसफर करने, रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शंस और एफपीआई के जरिए निवेश के आरोपों की जांच की गई थी।

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एक इंडिपेंडेंट एडजुकेटिंग अथॉरिटी और एक अपीलेट ट्रिब्यूनल ने इस बात की पुष्टि की थी कि कोई ओवर-वैल्यूएशन नहीं था और ट्रांजैक्शंस कानूनों के मुताबिक थे। मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया था। इसलिए इन आरोपों की कोई प्रासंगिकता या आधार नहीं है।