भयावह आंकड़े जारी कर कांग्रेस ने साढ़े नौ लाख छात्र, बेरोजगार, किसान, मजदूर व महिलाओं की आत्‍महत्‍या के लिए मोदी सरकार को बताया जिम्‍मेदार

कश्मीरी पंडित

आरयू ब्‍यूरो, लखनऊ। बीते सालों में देश में आत्‍महत्‍या के मामलों में आई तेजी के लिए कांग्रेस ने रविवार को मोदी सरकार को जिम्‍मेदार ठहराया है। आज करीब साढ़े नौ लाख छात्र, किसान, खेत मजदूर, बेरोजगार, दैनिक वेतन भोगी व महिलाओं के आत्‍महत्‍याओं का आंकड़ा जारी करते हुए कांग्रेस ने इसके लिए सीधे मोदी सरकार की ही नितियों को जिम्‍मेदार बताया है। कांग्रेस ने कहा है कि अच्‍छे दिनों का नारा देकर सत्‍ता में आने वाली मोदी सरकार ने देश को अवसाद में ढकेलते हुए आत्‍महत्‍या करने के लिए मजबूर किया है।

कांग्रेस के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने आज अपने एक बयान में कहा है कि हाल में ही मोदी सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा आत्महत्या को लेकर जारी की गई रिपोर्ट रोंगटे खड़े कर देने वाली है। एनसीआरबी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कांग्रेस प्रवक्‍ता ने कहा कि जब जीने का अंतिम अवसर भी दम तोड़ दे, तब आदमी मौत को गले लगा लेता है। मोदी सरकार की सत्ता की सरपरस्ती में बीते सात सालों में बस यही हुआ है। अन्नदाता किसानों, मेहनतकश मजदूरों, दैनिक वेतनभोगियों, के अलावा भारत के भविष्य कहे जाने वाले छात्रों, बेरोजगार, गृहणियों अर्थात समाज के हर वर्ग के तरक्की के अवसरों को मोदी सरकार ने अवसाद में तब्दील कर दिया।

यही वजह है कि साल 2014 से 2020 तक, मोदी सरकार की नाकाम नीतियों से मजबूर होकर भारत के 9,52,875 लोगों ने जान दे दी और अब इन नाकामियों को छिपाने के लिए मोदी सरकार नफरत, निराशा, नकारात्मकता का तांडव कर रही है।

नीचें देखें जारी मौतों का आंकड़ा-

आत्महत्या के आंकड़े

पूंजीपतियों को नमन, किसानों का दमन

किसानों के जान देने के मामलों पर सुरजेवाला ने तर्क देते हुए कहा कि सात सालों में मोदी सरकार की ‘पूंजीपतियों को नमन और किसानों का दमन’ की नीति के चलते 78,303 किसानों ने आत्महत्या की है, जिसमें से 35,122 खेतिहर मजदूर हैं। 2019 की तुलना में 2020 में खेतिहर मजदूरों ने 18 प्रतिशत तक अधिक आत्महत्या की है। मोदी सरकार ने किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर करते हुुए सात सालों में खेती की लागत 25,000 रुपये हेक्टेयर बढ़ा दी। हाल ही में सांख्यिकीय मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि देश के किसानों की औसत आय मात्र 26.67 रुपये प्रतिदिन है और औसत कर्ज 74,000 रु. प्रति किसान हो गया है। खुद सरकार ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि समर्थन मूल्य पर किसान की फसलें पर्याप्त मात्रा में नहीं खरीदी जा रहीं और उन्हें बाजार में 40 प्रतिशत तक कम दाम मिल रहे हैं। इतना ही नहीं 2016 से लागू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी निजी कंपनियों को 26,000 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ है। ऊपर से पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने वाले तीन काले कानून किसानों को और तबाह कर रहें हैं।

यह भी पढ़ें- मोहम्मद शमी के समर्थन में खुलकर उतरे राहुल गांधी, क्रिकेटर से कहा, नफरत से भरे लोगों को कर दो माफ, उन्‍हें कोई नहीं देता प्‍यार

मोदी सरकार ने 45 वर्षों की भीषणतम बेरोजगारी परोसी

मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस प्रवक्‍ता ने आगे कहा कि इस सरकार में 2014 से 2020 तक 69,407 छात्रों ने जान दी है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस अवधि में छात्रों की आत्महत्या में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं, बेरोजगारी में आकंठ डूबे 86,851 लोगों ने साल 2014 से 2020 के दौरान आत्महत्या की और दुखद पहलू यह भी है कि 2014 की तुलना में 2020 में 58 प्रतिशत अधिक बेरोजगारों ने अपनी जान ली है। मोदी सरकार की सत्ता में बीते सात सालों से ये परिस्थितियां हैं। श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट 2017-18 में इस बात का खुलासा हुआ था कि मोदी सरकार ने 45 वर्षों की भीषणतम बेरोजगारी देश में परोस दी है। भारत का भविष्य छात्र और बेरोजगारों में भयानक निराशा व्याप्त है।

नहीं मिली कमाई, दैनिक वेतनभोगी ने जान गंवाई

रणदीप सिंह ने हमला जारी रखते हुए कहा कि दैनिक वेतनभोगी (डेली वेजर्स) मोदी सरकार की नीतियों की नाकामी की वेदना भोग रहे हैं। हाल यह है कि 2014 से 2020 के बीच 1,93,795 दैनिक वेतनभोगियों ने आत्महत्या की। अचंभित करने वाला सच यह है कि 2014 की तुलना में 2020 में 139.37 प्रतिशत अधिक लोगों ने आत्महत्या की। ऑक्सफैम की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि बीते दिनों भारत के सौ अमीरों की संपत्ति 13 लाख करोड़ रु. बढ़ी और भारत के 12 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गवाईं। इतना ही नहीं, आरबीआइ ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नोटबंदी और गलत जीएसटी से देश के छोटे और मंझोले कारोबार तबाह हो गए हैं, खासकर असंगठित क्षेत्र के, जिसकी वजह से करोड़ों लोगों ने अपनी नौकरी से हाथ धोया है।

गृहणियों के जीवन में लगा दिया ग्रहण

लगातार बढ़ती महंगाई, नौकरियों के अवसर समाप्त होना, ये प्रमुख कारण हैं कि गृहणियों को गृह कलह का दंश झेलना पड़ता है और वो इसके समाधान के रूप में मौत को गले लगा लेती हैं। सन 2014 से 2020 के बीच 1,52,127 गृहणियों ने आत्महत्या की है। आज के हालात तो भयावह हैं, खाना बनाने की गैस हजार रुपये के पार, खाना बनाने का तेल 200 रुपये के पार, पेट्रोल-डीज़ल क्रमशः 100 और 90 रुपये पार हैं तथा फल-सब्जियां व अन्‍य खाद्यान्न भी महंगाई की भेंट चढ़ गए हैं।

यह भी पढ़ें- प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर प्रियंका ने कहा, “शिक्षक, शिक्षामित्र व अनुदेशकों के साथ हो रहा अन्‍याय, कांग्रेस करेगी घोषणा”

अंत में सुरजेवाला ने कहा कि इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि मोदी सरकार निरंतर सत्ता की भूख में मरी जा रही है और देश की जनता बेरोजगारी-महंगाई-फसलों के बढ़ते दाम इत्यादि की बलिवेदी पर मौत को गले लगा रही है। साल 2014 की तुलना में 2020 में कुल 16 प्रतिशत अधिक लोग आत्महत्या करने लगे हैं।