आरयू ब्यूरो, प्रयागराज। राजधानी लखनऊ के हजरतगंज समेत अन्य चौराहों पर उपद्रव के आरोपितों के पोस्टर लगाए जाने के मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रूख अख्तियार किया है। मामले का स्वत: संज्ञान लेने के साथ ही रविवार को हाई कोर्ट ने इसकी सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया। जिसे सोमवार यानि कल दो बजे सुनाने की बात हाईकोर्ट ने कही है। साथ ही अदालत ने उम्मीद जताई है कि तब तक इस मामले प्रदेश सरकार की ओर से आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने आज सुबह इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया। जिसके बाद अवकाश का दिन होने के बाद भी हाईकोर्ट ने आज ही मामले की सुनवाई का फैसला लिया।
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चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने दस बजे से सुनवाई शुरू की। एडवोकेट जनरल के बाद में पेश होने की बात पर सुनवाई अपराह्न तीन बजे तक के लिए टाल दी, क्योंकि मौसम खराब होने की वजह से एडवोकेट जनरल को आने में देरी थी। चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर एवं जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने सुनवाई के प्रारंभ में अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी से मौखिक रूप से कहा कि यह विषय गंभीर है।
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उन्होंने सुनवाई के दौरान सवाल किया कि क्या राज्य सरकार ने नागरिकों की निजता और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं किया है। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अदालत ने इस मामले में लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट और मंडल पुलिस आयुक्त को तलब किया है। पोस्टर लगाने को बेंच ने कहा कि यह राज्य के प्रति भी अपमान है और नागरिक के प्रति भी।
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वहीं सुनवाई के दौरान बेंच ने यह भी कहा कि पोस्टरों में इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि किस कानून के तहत ये पोस्टर लगाए गए हैं। हाईकोर्ट का मानना है कि सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यह राइट टू प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है।
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सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि जिन लोगों पर कार्रवाई की गई है वो कानून तोड़ने वाले लोग हैं। अदालत में दायर की गई याचिका का विरोध करते हुए सरकार ने कहा कि ऐसे लोगों के खिलाफ जनहित याचिका दायर नहीं होनी चाहिए। चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर एवं जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने सुनवाई के प्रारंभ में अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी से मौखिक रूप से कहा कि यह विषय गंभीर है। ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जाना चाहिए जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे।