बेटे की हुई साइकिल और सपा, आयोग का फैसला जानते थे अखिलेश!

लोकसभा प्रत्याशी
अखिलेश यादव। (फाइल फोटो)

आरयू ब्‍यूरो

लखनऊ। समाजावादी पार्टी के बटवारे को लेकर लंबे समय से यादव परिवार में मचे बवाल और सस्‍पेंस का दौर आज शाम थम गया। चुनाव आयोग ने फैसला सुनाते हुए चुनाव चिन्‍ह साइकिल के साथ ही समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव की मोहर लगा दी।

आयोग के फैसले के बाद अब साइकिल पर सवार अखिलेश मजबूती के साथ विधानसभा चुनाव में ताल ठोक सकेंगे। साइकिल मिलने के बाद जहां अखिलेश यादव के खेमे में खुशियां मनाया जाना शुरू हो गया है, वहीं दूसरी ओर फैसले को मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर के बड़े टर्निंग प्‍वाइंट के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक अखाड़े में बड़े-बड़े को दांव देने वाले मुलायम सिंह यादव ने इस बार अपने ही खून के हाथों दांव खाया है।

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मुलायम के साथ ही लगा दी गई अखिलेश की नेमप्‍लेट। फोटो-आरयू

शाम को चुनाव आयोग का फैसला भले ही आया हो, लेकिन अपने पक्ष में फैसला आने का आभास अखिलेश यादव को दिन में ही हो गया था। पार्टी का मुखिया चुने जाने के सोलहवें दिन आज राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के तौर पर अखिलेश की नेमप्‍लेट पार्टी कार्यालय पर लगाई गई, तो इसका यही मतलब निकल रहा है।

सपाई रंग से इतर काले रंग की प्‍लेट पर गोल्‍डन लिखावट से अखिलेश का नाम और नया पद लिखा गया है। अध्‍यक्ष बनने के पन्‍द्रह दिन बाद और पार्टी अधिकार पर फैसला आने के चंद घंटे पहले लगाई गई इस प्‍लेट केे कई मतलब निकलकर सामने आ रहे।

बता दें कि एक जनवरी को हुए अधिवेशन में शिवपाल यादव और मुलायम सिंह को उनके पदों से हटाने के फौरन बाद ही शिवपाल की नेम प्‍लेट हटा दी गई थी, जबकि मुलायम सिंह यादव की नेम प्‍लेट आज तक अपनी जगह लगी हुई है।

बीच में एक बार मुलायम ने खुद भी शिवपाल की नेम प्‍लेट लगवाई थी, लेकिन शनिवार को फिर पार्टी कार्यालय की फिजा बदली और शिवपाल की नेम प्‍लेट हटाकर नरेश उत्‍तम पटेल की लगा दी गई थी।

उल्‍लेखनीय है कि मुलायम और अखिलेश खेमे ने बारी-बारी से पार्टी पर अपना दावा चुनाव आयोग में ठोका था। दोनों खेमों को सुनने के बाद आखिरकार आज आयोग ने अखिलेश के समर्थन में अपना फैसला सुना दिया। इससे पहले अंदेशा लगाया जा रहा था कि आयोग पार्टी का नाम और चिन्‍ह सीज कर सकता है।

इस स्थिति में समाजवादी पार्टी के खेमों को नए नाम और चुनाव चिन्‍ह के साथ विधानसभा चुनाव लड़ना होता। इस स्थिति में बेहद कम समय की वजह से सपा को भारी नुकसान उठाना पड़ता।