आरयू ब्यूरो
लखनऊ। लखनऊ विकास प्राधिकरण के इंजीनियरों का एक और चौंकाने वाला कारनामा सामने आया है।इंजीनियर-अधिकारियों ने अपने मतलब के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के जेपीएनआईसी व अन्य ड्रीम प्रॉजेक्ट की तरह साइकिल ट्रैक में भी जमकर मनमानी की है।
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कहने को एलडीए गोमतीनगर में कुल आठ साइकिल ट्रैक बनवा रहा है, लेकिन कारनामा करने में माहिर इंजीनियरों ने करीब 27 करोड़ खर्च कर 17 किलोमीटर में बन रहे इन ट्रैक के 27 टुकड़े कर चहेतों ठेकेदारों में बांट दिए हैं।
हद है! आठ पार्ट के बाद भी किया आधा-आधा
फैजाबाद-मल्हौर स्टेशन तक करीब सवा छह करोड़ की लागत से बनने वाले मात्र 3.44 किलोमीटर लंबे इस ट्रैक के काम को इंजीनियरों ने आठ पार्ट कर दिया। इसके बाद भी मन नहीं भरा तो पार्ट नम्बर एक को आधा-आधा कर दो अलग-अलग कंपनियों में बांट दिया गया।
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इस बारे में पूछे जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खास माने जाने वाले व एलडीए के मुखिया सत्येंद्र सिंह यादव ने पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया। उनका कहना था कि इस तरह से काम को कराने के जानकार और जिम्मदार चीफ इंजीनियर है।
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जबकि चीफ इंजीनियर ओपी मिश्रा का दावा है कि साइकिल ट्रैक को जल्दी पूरा कराने के लिए काम को ज्यादा भागों में बांटा गया। वहीं दूसरी ओर जानकार बताते है कि अपने फायदे व ज्यादा से ज्यादा ठेकेदारों को खुश करने के लिए आठ की जगह करीब दो दर्जन कंपनियों को इस काम में लगाया गया।
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तैयार होना था छह महीने में, डेढ़ साल में भी नहीं हुआ पूरा
गोमतीनगर में अधिकतर साइकिल ट्रैक का काम सितंबर 2015 में शुरू हुआ था। लगभग सभी साइकिल ट्रैक को पूरा करने के लिए ठेकेदारों को छह महीने का समय भी दिया गया था, लेकिन काम की जगह कमीशनखोरी में दिमाग लगाने वाले इंजीनियर करीब डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी आज तक कई ट्रैक का काम ठेकेदारों से पूरा नहीं करा पाए। इंजीनियरों की जमीनी प्लानिंग के अभाव में कुछ जगाहों पर साइकिल ट्रैक निरस्त भी करना पड़ा है।
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डेढ़ महीने में दोहरे टेंडर की रिपोर्ट चीफ इंजीनियर से नहीं ले पाए VC
बताते चले कि ‘राजधानी अपडेट’ ने इससे पहले 22 और 26 फरवरी को सीएमएस तिराहे से हुसडि़यां चौराहे तक नाले पर बने एक ही साइकिल ट्रैक के दो बार टेंडर होने के मुद्दे पर भी सवाल उठाया था। मामला सामने आने के बाद उपाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह यादव ने दावा किया था कि चीफ इंजीनियर से जवाब मांगा गया है, जवाब मिलने पर दोषी इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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वहीं इस बारे में वीसी का कहना है कि चीफ इंजीनियर ओपी मिश्रा ने उन्हें अब तक रिपोर्ट ही नहीं दी है। दूसरी ओर चीफ इंजीनियर की माने तो उन्होंने रिपोर्ट वीसी को भेज दी है।
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फिलहाल दोनों अधिकारियों में कौन सच्च बोल रहा है यह तो उच्च स्तरीय जांच के बाद ही साफ हो पाएगा, लेकिन डेढ़ महीना बीत जाने के बाद भी अधिकारियों के इस तरह के रवैये से एक बात साफ हो चुकी है कि साइकिल ट्रैक में न सिर्फ मानकों की अनदेखी की गई है, बल्कि बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमित्ता भी हुई है।